हेल्लो दोस्तों आज के इस पोस्ट में आपको function of management in hindi के बारे में बताया गया है की क्या होता है कैसे काम करता है तो चलिए शुरू करते है
संगठन (Organizing)
संगठन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा प्रतिष्ठान का मानवीय ढाँचा (Structure) तय किया जाता है और कार्य आवटित किये जाते हैं। संगठन से अनेक कर्मचारियों द्वारा समग्र तथा सहयोगपूर्ण क्रिया के लिए विन्यास (Mechanism) प्राप्त होता है।
संगठन के अन्तर्गत उपक्रम में होने वाली विभिन्न गतिविधियों को पहचान कर समूह बद्ध करना, उन्हें अधीनस्थ कर्मचारियों में विभाजित करना तथा दायित्वों और अधिकारों का निर्धारण करना आता है। यह व्यक्ति, कार्य तथा संसाधनों के मध्य एक सम्बन्ध स्थापित करता है। यह न्यूनतम व्यय पर अधिकतम दक्षता प्राप्त करने का प्रयत्न करता है। इस क्रिया के निम्न पद हैं
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(i) गतिविधियों की पहचान करना,
(ii) गतिविधियों का विभाजन करना,
(iii) प्रत्येक को उचित जॉबवर्क देना,
(iv) अधिकारों एवं दायित्वों में सम्बन्ध स्थापित करना।
संगठन का ढाँचा ऐसा होना चाहिए जिसमें प्रत्येक कर्मचारी अपने अधिकारों की सीमा जानता हो तथा अपने उत्तरदायित्व को पहचानता हो।
नियुक्ति करना (Staffing)
“स्टाफिंग’ अर्थात “नियुक्ति करना” एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है जिसमें कर्मचारियों के रिक्त स्थानों को भरा जाता है और. नये सृजित स्थानों पर नियुक्तियाँ की जाती हैं।
उपयोगी तथा सक्षम व्यक्ति का चयन करके उसे कार्य हेतु प्रशिक्षित किया जाता है, परफार्मेन्स के आधार पर तरक्की दी जाती है और सेवाकाल पूर्ण करने के बाद सेवानिवृत्ति दी जाती है। इस प्रक्रिया में किये जाने वाले मुख्य कार्य निम्न हैं
(i) भर्ती
(ii) चयन
(iii) नियुक्ति
(iv) प्रशिक्षण
(v) तरक्की तथा
(vi) एक ऐसा तंत्र बनाना जो व्यक्ति की परफार्मेन्स देखकर पारिश्रमिक तय करे।
किसी संगठन में कार्य करने वाले व्यक्ति अलग-अलग उम्र, समाज, धर्म, सोच, इच्छाशक्ति, पहलशक्ति, भौतिक रूप से सम्पन्नता वाले हो सकते हैं। इन सबको एक साथ प्रशिक्षित करना, उनसे कार्य कराना और उनमें समन्वय बनाये रखना कठिन कार्य है। नियुक्ति द्वारा हम सही काम के लिए सही व्यक्ति का चयन करते हैं, प्रशिक्षण देते हैं और प्रोत्साहन देते हैं जिससे कि संगठनात्मक प्रभाव बढ़ सके तथा उत्पादकता में वृद्धि हो।
निर्देशन (Directing)
सही अथवा उचित निर्देशन, उद्योग अथवा उपक्रम की सफलता और अस्तित्व को बनाये रखने के लिए अति आवश्यक है। कोई भी गतिविधि केवल तब प्रारम्भ की जा सकेगी जब प्रबन्धक अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को आवश्यक निर्देश दत हैं कि क्या कार्य, कब करना है और कैसे करना है। निर्देशन के अन्तर्गत अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा की जा रही गतिविधिया का पर्यवेक्षण करके उन्हें आवश्यक दिशानिर्देश दिये जाते हैं और आवश्यकतानुसार प्रोत्साहित (Motivate) भी किया जाता ह।
प्रबन्धक, जो गतिक नेतृत्व (dynamic leadership) प्रदान कर सके, उचित निर्देशन कर सकता है। इस क्रिया में कि जाने वाले प्रमुख पद निम्न हैं
(i) आदेशों और निर्देशों को जारी करना,
(ii) अधीनस्थों को प्रशिक्षित करना तथा पथ-प्रदर्शन (Guide) करना,
(iii) अधीनस्थों के कार्यों का पर्यवेक्षण करना। पर्यवेक्षण से यह सुनिश्चित होता है कि अमुक कार्य कम्पनी की योजना के अनुसार हो रहा है तथा अधीनस्थ वह कार्य कर रहा है जो उसे करने के लिए कहा गया है। डाइरेक्टर (जो निर्देशन करता है) जो आदेश देता है, उसी का उपक्रम में पालन किया जाता है। अत: आदेश स्पष्ट, निश्चित, समझ आने योग्य, प्रसार करने योग्य तथा प्रायोगिक होना चाहिए। जहाँ तक संभव हो, आदेश लिखित में होने चाहिए।
प्रोत्साहन (Motivating)
प्रोत्साहन का अर्थ है किसी व्यक्ति को एक विशिष्ट कार्य के लिए मानसिक रूप से तैयार करना।
ऐसे व्यक्ति, जिसमें अपना कार्य प्रभावकारी ढंग से करने की इच्छाशक्ति हो और जो व्यापार के सामूहिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सहयोग करते हो, और व्यक्तियों के लिए प्रोत्साहन का कार्य करते हैं।
किसी उपक्रम के सफल प्रबन्धन के लिए प्रोत्साहन एवं नेतृत्व मुख्य कुंजी है। ये मानव संसाधनों की उत्पादकता में वृद्धि करते हैं। प्रोत्साहन किसी व्यक्ति को अमुक कार्य को करने के लिए प्रेरित करता है। प्रोत्साहन का विस्तृत विवरण इसी अध्याय के अगले अनुच्छेदों में किया गया है।
reference-https://www.uagc.edu/blog/5-principles-of-great
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