हेल्लो दोस्तों आज के इस पोस्ट में आपको job satisfaction and job enrichment in hindi के बारे में बताया गया है की क्या होता है कैसे काम करता है तो चलिए शुरू करते है
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कार्य सन्तुष्टि एवं कार्य समृद्धिकरण (Job Satisfaction and Job Enrichment)
कार्य या नौकरी से सन्तुष्टि (Job Satisfaction)
सम्पूर्णता अथवा आनन्द का वह अहसास जो किसी व्यक्ति को उसके कार्य (जॉब) से प्राप्त होता है, कार्य सन्तुष्टि (Job Satisfaction) कहलाता है।
“Job satisfaction is defined as a feeling of fulfilment or enjoyment that a person derives from their job”
कार्य सन्तुष्टि अपने काम के प्रति एक व्यक्ति के रवैये को प्रदर्शित करती है। अगर एक व्यक्ति अपने कार्य/नौकरी से सन्तुष्ट होगा, तब उसका व्यवहार तथा कार्य के प्रति उसकी निष्ठा अनुकूल होगी जिसका सीधा लाभ उद्योग अथवा उपक्रम को मिलेगा।
(a) कार्य संतुष्टि के कारण (Causes of Job Satisfaction)
- संगठनात्मक कारक (Organisational Factors)—ऐसे अनेक संगठनात्मक कारक होते हैं जिनके कारण एक व्यक्ति को कार्य सन्तुष्टि प्राप्त हो सकती है। उदाहरण के लिए कार्य अथवा नौकरी में भविष्य में मिलने वाले अवसर (Opportunites), कार्य की प्रकति (Nature of the job), संगठन की नीतियाँ (Policies), कार्य परिस्थितियों की नीतियाँ, पदोन्नति के लिए भगतान आदि। प्रभावी पदोन्नति (योग्यता बनाम वरिष्ठता), विदेशी कार्य, छंटनी तथा पुरस्कार प्रणाली आदि संगठनात्मक नीतियों एवं प्रक्रियाओं से भी कार्य सन्तुष्टि प्राप्त होती है।
- कार्यकारी परिस्थितियाँ (Working Conditions)—एक कर्मचारी के काम की परिस्थितियाँ, शारीरिक आराम के साथ संगत है और कार्य सन्तुष्टि में योगदान करती है। यदि कार्य स्थल का तापमान (Temperature), आर्द्रता (Humidity) संवातन (Ventilation), प्रकाश व्यवस्था (Lighting Arrangement), शोर (Noise), पर्याप्त कार्यस्थल एवं उपकरण (Adequate Space and Eauipments), सफाई आदि अनुकूल है तो कर्मचारी को सुखद अहसास होगा और उसकी कार्य के प्रति सन्तुष्टि बढ़ेगी।
- समूह कारक (Group Factors)-समूह का आकार (Size of group) तथा पर्यवेक्षण (Supervision) दो ऐसे समूह कारक है जो कार्य के प्रति कर्मचारी की सन्तुष्टि को प्रभावित करते हैं।
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आकार (Size) समूह का बड़ा आकार, सन्तुष्टि के स्तर को कम करता है। बड़े आकार से भागीदारी एवं सामाजिक सम्बन्धों में कमी आती है। सदस्यों को क्षमता की भी ठीक से पहचान नहीं हो पाती है। अधिक समूह सदस्य होने से समूहों के मध्य कलह, संघर्ष आदि बढ़ जाते हैं।
पर्यवेक्षण (Supervision)—पर्यवेक्षण की कथित गुणवत्ता, कार्य/नौकरी से सन्तुष्टि का एक और निर्धारक है। सन्तुष्टि का यह भाव तब उच्च होता है जब कर्मचारी अपने पर्यवेक्षक पर विश्वास करते हैं और मानते हैं कि वे अधिक सक्षम है और उनके सर्वोत्तम हित में है, साथ ही उन्हें पूर्ण गरिमा एवं सम्मान देते हैं। इसके साथ ही संचार भी कार्य सन्तुष्टि का एक महत्वपूर्ण पक्ष है। यदि कर्मचारी/श्रमिक अपने पर्यवेक्षक के साथ आसानी से संवाद करने में सक्षम है तब उसकी सन्तुष्टि का स्तर भी उच्च हो जाता है।
- मजदूरी (Wages)—मजदूरी, नौकरी से सन्तष्टि में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके दो प्रमुख कारण है। आवश्यकताओं को परा करने के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है तथा द्वितीय-कर्मचारी यह मानते भान का उनक प्रति चिता का एक प्रतिबिम्ब है। कर्मचारी एक ऐसी मजदूरी भुगतान प्रणाली चाहते हैं जो साल और उनकी उम्मीदों के साथ है। वेतन को नौकरी की माँग, व्यक्तिगत कौशल स्तर और समुदाय वेतन मानकों के आधार पर उचित रूप में देखा जाता है।
- पदोन्नति (Promotion)—पदोन्नति के अवसर नौकरी से सन्तुष्टि को प्रभावित करते हैं। पदोन्नति से जिम्मेदारी स्वर स्थिति, भुगतान की स्थिति, नौकरी सामग्री में परिवर्तन आदि संभव होता है। एक कर्मचारी को सरकारी संगठन में उसके सेवाकाल में औसतन दो या तीन पदोन्नति मिलती है जिसे वह अपनी परम उपलब्धि के रूप में लेता है। इससे वह सन्तुष्टि को अहसास करता है।
- कार्य की प्रकृति (Nature of the Job)-अधिकांश कर्मचारी अथवा कार्मिक कार्य या नौकरी में बौद्धिक चनौति चाहते हैं। इन चुनौतियों के कारण नौकरियों में उत्साह और रोमांच बना रहता है। बहुत कम चुनौती वाली नौकरी बोरियत पैदा करती है जबकि बहत अधिक चनौती वाली नौकरी हताशा और विफलता के भय की भावना पैदा करती है। शर्तों के अधीन परन्तु उदारवादी चुनौती कर्मचारियों को खुशी एवं संतोष प्रदान करती है।
(b) कार्य सन्तुष्टि के प्रभाव (Effects of Job Satisfaction)
- उत्पादकता (Productivity)—कार्य सन्तुष्टि का उत्पादकता पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। यदि कर्मचारी अपनी नौकरी से सन्तुष्ट होगा तो वह अपनी नौकरी से भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ महसूस करता है और अपना कार्य पूरी ईमानदारी एवं निष्ठा से करता है। इससे उत्पाद की उत्पादकता एवं गुणवत्ता दोनों में वृद्धि होती है। ..
- चयन तथा भर्ती प्रक्रिया में कमी (Less Selection and Recruitment) यदि कर्मचारी अपने कार्य से सन्तुष्ट होगा तब उसके आस-पास का माहौल भी खुशनुमा होगा। वह अपने अधिकारियों के निर्देशों का पालन उत्साहपूर्वक करेगा तथा अपने अधीनस्थ लोगों के साथ बेहतर सहयोग करेगा। सन्तुष्ट न होने की दशा में वह खिन्न अर्थात् चिड़चिड़ा रहेगा और उसके नौकरी छोड़कर जाने की संभावना बहुत अधिक होगी। जिसके कारण नियोक्ता (Employer) को नयी भर्ती करनी पड़ती है जिसमें धन एवं समय की बर्बादी होती है और अनुभवहीन एवं अकुशल कर्मचारी की भर्ती होती है। इस प्रकार कार्य सन्तुष्टि होने से बार-बार चयन एवं भर्ती की प्रक्रिया करने में कमी आती है।
- अनुपस्थिति (Absentee) यदि कर्मचारी अपने कार्य से सन्तुष्ट होगा तब वह अपने कार्य से बार-बार अनुपस्थित भी नहीं होगा अन्यथा वह बार-बार स्वास्थ्य या निजी कारणों का बहाना करके छुट्टी ले लेते हैं। इससे उत्पादकता एवं गणवत्ता दोनों प्रभावित होती है।
- सुरक्षा (Safety) यदि कर्मचारी सन्तुष्ट नहीं होगा तो उसमें कुण्ठा (Frustration) आ जाती है और वह सुरक्षा नियमों के प्रति भी लापरवाह हो जाता है। इससे बड़ी दुर्घटना भी हो सकती है और जानमाल का नुकसान भी हो सकता है।
- तनाव (Tension) यदि कर्मचारी अपने कार्य से सन्तुष्ट नहीं होगा तो वह हमेशा दिमागी रूप से तनाव में बना रहेगा। लम्बे समय तक तनाव से कर्मचारी में गंभीर बीमारियाँ उत्पन्न हो सकती हैं जैसे-हृदय रोग, अल्सर, पीठ दर्द, माँसपेशियों का दर्द आदि। तनाव से बचने के लिए आवश्यक है कि कार्य परिस्थितियाँ ऐसी हो कि कर्मचारी की सन्तुष्टि का अहसास बना रहे।
कार्य या नौकरी संवर्धन (Job Enrichment)
कार्य संवर्धन एक प्रबन्धकीय अवधारणा है जिसके अन्तर्गत कार्य (Job) को पुनः अभिकल्पित (Redesigning) किया जाता है जिससे कि वह कर्मचारी के लिए अधिक चुनौतीपूर्ण बन सके तथा उसमें विभिन्न कार्यों की पुनरावृत्ति न्यूनतम हो।
“Job enrichment is a management concept that involves redesigning jobs so that they are more challenging to the employee and have less repetitive work”.
कार्य सवंर्धन को एक माध्यम के रूप में व्यक्त किया जा सकता है जिसके द्वारा प्रबन्ध तन्त्र स्व:उत्साही कर्मचारियों को उच्च स्तरीय कर्मचारियों के लिए आरक्षित दायित्वों को निभाने के लिए नामित करता है। ऐसा करने से कर्मचारियों को अपना कार्य अर्थपूर्ण तथा कम्पनी के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण लगता है।
उद्देश्य (Purpose) कार्य संवर्धन (Job enrichment), कार्य वर्तन (Job rotation) तथा कार्य वृद्धि (Job enlargement) तीन ऐसे तरीके है जिन्हें नियोक्ता कार्य को और अधिक संतोषजनक बनाने के लिए अपनाता है। यहाँ कार्य वर्तन से कर्मचारी को उसी स्तर पर अधिक जिम्मेदारी मिलती है तथा कार्य संवर्धन से कर्मचारी को अधिक प्रत्यक्ष अधिकार प्राप्त होते हैं। इसका उद्देश्य कर्मचारी को उसके द्वारा किये जाने वाले कार्यों के लिए और अधिक जवाबदेह बनाना है। ऐसा करने से कमर्चारी बिजनेस/ संगठन के साथ और अधिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
reference-https://www.aihr.com/blog/job-enrichment/#:~:text=is%20job%20enrichment%3F-
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B. A. Final year 6th sem.
साइकोलॉजी me first lesson ke hindi me nots chaiye 🙏