हेल्लो दोस्तों आज के इस पोस्ट में आपको Industrial disputes in hindi के बारे में बताया गया है की क्या होता है कैसे काम करता है तो चलिए शुरू करते है
औद्योगिक विवाद (Industrial Disputes)
“औद्योगिक विवाद को कोई विवाद अथवा मतभेद, जो नियोक्ता तथा कर्मचारियों के मध्य अश में आपस में हो, द्वारा परिभाषित किया जा सकता है।” यह रोजगार सम्बन्धी, किसी व्यक्ति की श्रम शर्तों , की कार्यदशाओं को लेकर भी हो सकता है।
एक का एक विवाद अथवा झगड़े का अर्थ है नियोक्ता तथा कर्मचारियों के मध्य हितों को लेकर होने वाला टकराव। प्रत्येक
की कुछ मूलभूत आवश्यकतायें होती हैं। जब किसी कारणवश इन आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होती तो वह खिन्न रहर है यही खिन्नता नियोक्ता तथा श्रमिक के बीच टकराव का कारण बनती है। औद्योगिक विवाद से देश, प्रबन्धन तथा प्रार सभी के हितों की हानि होती है।
औद्योगिक विवाद के कारण
(i) श्रमिक को पगार (Salary) की हानि होती है।
(ii) प्रबन्धन को लाभ की हानि होती है,
(iii) बाजार में उत्पाद की कमी आ जाती है जिससे उपभोक्ता को परेशानी उठानी पड़ती है।
(iv) उत्पादन में कमी का असर राष्ट्र के विकास पर भी होता है।
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औद्योगिक विवाद के मुख्य कारण (Main Causes of Industrial Dispute)
औद्योगिक विवाद के मुख्य कारण निम्न हैं
1. कम वेतन (Low Wages)-कम वेतन अधिकतर औद्योगिक विवादों का मुख्य कारण है। श्रम यूनियन प्राय: अधिक वेतन की माँग करते हैं जबकी नियोक्ता श्रमिक को कम वेतन देकर अधिक लाभ उठाना चाहता है। इन विपरीत हितों के टकराव से औद्योगिक विवाद उत्पन्न होता है।
2. बोनस तथा अन्य भत्तों का न मिलना (Non Payment of Bonus and other Allowances) यदि बोनस, भत्ता अथवा अन्य कोई प्रलोभन/प्रोत्साहन का भुगतान समय तथा सही दर पर न हो तो श्रमिक नाराज हो जाते हैं जा विवाद का कारण बन सकता है।
3. कार्य के घण्टे तथा छुट्टियाँ (Working Hour’s & Leave)-अधिक कार्य छोटे तथा कम छुट्टियाँ भी विवाद का कारण बन सकते हैं जब नियोक्ता नियमानुसार कार्य घण्टों से अधिक समय तक काम करने के लिए दबाव है या छुट्टियों के निर्धारित नियमों का पालन नहीं करता।
4. अतिरिक्त समय का भुगतान न होना (Non Payment of Overtime)—नियमानसार अतिरिक्त समय का भुगतान न होना भी विवाद का कारण बन सकता है।
5. श्रमिकों की छटनी एवं बर्खास्तगी (Retrenchment and Dismissal of Coworkers)-प्रबन्धन रिश्तों, व्यापार में घाटा, आधुनिक मशीनों के लगने से अतिरिक्त मजदरों की छंटनी आदि के कारण तथा नियोक्ता के मध्य टकराव की स्थिति बन सकती है।
6. कार्यकारी दशाओं का खराब होना (Adverse Working Conditions)-खराब कार्यकारी दर अधिक सर्द अथवा गर्म, गन्दगी एवं शोर, कम रोशनी, खराब मशीन, घटन आदि अनेक कारणों से कर्मचारी/श्रमिक असंतुष्ट हो सकता है और औद्योगिक विवाद को बढ़ावा मिलता हैं।
7. पक्षपात (Favourism) नियुक्ति, पारितोषिक, प्रोन्नति प्रोत्साहन तथा कार्य के बँटवारे में पक्षपात भी कारण बनते है।
8. शोषण (Exploitation)-कर्मचारी का शोषण भी कर्मचारी के मन में विवाद उत्पन्न कर सकता है जो विवाद का कारन बन सकता है
9. राजनैतिक कारण (Political Causes)-कभी-कभी ट्रेड यूनियनें किसी राजनैतिक दल के बहकावे में आकर जानबूझ कर विवाद को जन्म देते हैं।
10. कार्य का महत्वहीन होना (Lack of Pride inwork)-जब श्रमिक अपने कार्य को महत्वहीन समझता है तब वह असंतुष्ट हो जाता है और विवाद को बढ़ावा देता है।
औद्योगिक विवाद के दुष्परिणाम (Some Serious Results of Industrial Disputes)
औद्योगिक विवाद के चलते होने वाले दुष्परिणामों में सबसे महत्वपूर्ण दुष्परिणाम “हड़ताल” (Strike) है।
“हड़ताल का अर्थ है कार्य से लगातार तब तक अनुपस्थित रहना जब तक कि माँगों को स्वीकार नहीं किया जाता अथवा कोई समझौता नहीं हो जाता।”
हड़ताल निम्न कई प्रकार की हो सकती है
(i) अधिकारिक अथवा अनाआधिकारिक हड़ताल (Official and Unofficial strike)
(ii)सर्वसाधारण अथवा व्यक्तिगत हड़ताल (General or Particular strike)
(iii) बैठकर हड़ताल (Sit down strike)
(iv) धीमा कार्य हड़ताल (Slow work strike)
(v) धरना (Picketting)
(vi) घेराव (Gherao)
(vii) तालाबन्दी (Lockouts)
जब कहीं भी कोई विवाद होता है तो उससे किसी न किसी को कोई नुकसान अवश्य होता है।
हड़ताल से होने वाले दुष्प्रभाव अथवा नुकसान निम्न हैं।
(i) श्रमिकों को आय की हानि। नौबत भुरुमरी तक पहुँच सकती है।
(ii) उद्योग के उत्पादन तथा लाभ में हानि।
(iii) नियोक्ताओं, प्रबन्धकों तथा श्रमिकों सभी को मानसिक तनाव।
(iv) बेरोजगारी को बढ़ावा मिलता है।
(v) कार्यकारी समय बर्बाद होता है।
(vi) यदि हड़ताल हिंसक हो जाये तो जान-माल की बर्बादी हो सकती है।
(vii) बाजार में उत्पाद की कमी आ जाती है जिससे उपभोक्ता को परेशानी होती है।
(viii) यदि हडताल असफल हो जाती है तो श्रमिक को बर्खास्त किया जा सकता है, पूर्व में दिये गये लाभ वापस लिये हा जा सकते हैं तथा श्रमिकों के मनोबल की हानि होती है।
औद्योगिक विवादों का निपटारा (Settlement of Indusrial Disputes)
श्रमिक असंतोष, औद्योगिक विवाद को जन्म देता है। भारतवर्ष में श्रमिक असंतोष तथा औद्योगिक विवाद का मूल कारण गरीबी है। हड़ताल का ज्यादातर प्रतिशत वेतन, बोनस तथा भत्तों के कारण होता है। जब कोई हड़ताल होती है, कारण चाहे जो हो, देश और समाज को उसका नुकसान उठाना पड़ता है। अत: हड़ताल को रोकने के हर संभव उपाय किये जाने चाहिए।
हड़ताल से बचाव के ही संभव प्रयास करने के बाद भी प्रशासनिक भ्रष्टाचार, एकाधिकार (monopoly), सामाजिक अन्याय आदि कई कारणों से श्रमिक असंतोष पनपता है। औद्योगिक विवादों का निपटारा निम्न प्रकार किया जा सकता है
1. सामूहिक सौदेबाजी (Collective bargaining)
2. प्रबन्धन तथा श्रमिक के मध्य अनुशासन के नियम,
3. प्रबन्धन में श्रमिकों की भागीदारी,
4. कर्मचारियों पर केन्द्रित लोकतंत्रिय तरीका,
5. उचित वेतन, बोनस, भत्ते, लाभ तथा उत्पादकता बोनस, पारितोषिक आदि,
6. अनुकूल कार्यकारी दशाएँ,
7. जॉब की सुरक्षा तथा सन्तुष्टि प्रदान करने के लिए सामाजिक सुरक्षा एवं श्रमिक कल्याण के उपाय,
8. श्रमिकों में बेहतर संचार तथा विवाद निपटाने के लिए बेहतर तंत्र,
9. कर्मचारियों के आत्मविश्वास को बढ़ाने तथा प्रोत्साहित करने का तंत्र, तथा
10. कर्मचारी नेता सहित स्वस्थ तथा मजबूत श्रम संगठन।
औद्योगिक विवादों के निपटने की विधिया (Methods of Settlement of Industrial Disputes)
प्रबन्धन तथा श्रमिक के मध्य औद्योगिक विवादों को सुलझाने के लिए प्रमुखतया निम्न दो विधियाँ होती हैं
(a) स्वयं निपटारा (Self-Settlement)-इस विधि में दोनों पक्ष अपने विवादों को बिना किसी तीसरे पक्ष को मध्यस्थ बनाये, स्वयं ही निपटाते हैं।
(b) बाह्य निपटारा (External Settlement)-इस विधि में, एक बाह्य तीसरा पक्ष, दोनों विवादित पक्षों को एक सम्मानजनक हल पर पहुँचने के लिए प्रेरित करता है। सामान्यतया विभिन्न साध्य विधियाँ, जो औद्योगिक निपटारे के लिए प्रयोग की जाती है, निम्न हैं
(i) सामूहिक सौदेबाजी (Collective Bargaining)
(ii) मध्यस्थता (Mediation)
(iii) काउन्सलिंग (Conciliation)
(iv) पंचायत (Arbitration)
(v) छानबीन (Investigation)
reference-
reference- https://fullstackgyan.com/full-form-of-html/
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