हेल्लो दोस्तों आज के इस पोस्ट में आपको Public Relations in hindi के बारे में बताया गया है की क्या होता है कैसे काम करता है तो चलिए शुरू करते है
प्रबन्धन प्रायः तीन कार्यकमों द्वारा अपने औद्योगिक सम्बन्धों का निर्देशन करता है। ये कार्यक्रम हैं
(i) जन सम्बन्ध (Public Relations) द्वारा,
(ii) श्रमिक सम्बन्ध (Labour Relations) द्वारा, तथा
(iii) कार्मिक प्रबन्धन (Personnel Management) द्वारा।
इनका संक्षिप्त विवरण निम्न है-
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(i) जन सम्बन्ध (Public Relations)
द्वारा-जन सम्बन्धों द्वारा प्रबन्धन लोगों, प्रोफेशनल समूहों, सरकारी एजेन्सियों तथा व्यापार जगत में अपने कम्पनी के व्यापारिक सम्बन्धों को नियन्त्रित करता है तथा उन्नत करता है
आम आदमी के साथ दोस्ताना सम्बन्ध तथा जनता द्वारा उपक्रम के लक्ष्यों की, की गई सराहना तथा सहयोग किसी भी उपक्रम/संगठन के कल्याण के लिए मुख्य तथा महत्वपर्ण बात है। आपसी सहयोग बढ़ाने तथा भ्रांतियों को कम करने के लिए बहत से उपक्रम जन-सम्पर्क ऑफिस का गठन करते हैं। लोगों की उपक्रम/उत्पाद के बारे में अनुकूल प्रतिक्रिया अच्छी साख बनाती है जिससे व्यापार को लाभ पहुँचता है।
जनसम्बन्ध, अच्छे आपसी सम्बन्ध के विकास के लिए विचारों तथा सच्चाई को संचारित (Communicate) करने का कला है। बडे उपक्रमों में जन-सम्पर्क अधिकारी (Public relation officer) प्रबन्धन (Management) के प्रति उत्तरदायी होता है। जन सम्पर्क अधिकारी शिक्षित एवं रिसर्च-स्पेशलिस्ट होते हैं। इसके साथ ही इन्हें जर्नलिज्म, पत्रकारों से सम्बन्ध, सामाजिक मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र तथा व्यापारिक प्रैक्टिस का भी ज्ञान होता है।
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वे उच्च प्रबन्धन को ऐसी नीतियों को बनाने की सलाह देते हैं जो जनता द्वारा स्वीकार्य होगी। दूसरे शब्दों में, कम्पनी की नीतियों को विभिन्न संचार माध्यमों जैसे समाचार पत्र, रेडियो, व्याख्यानों तथा बुलेटिन द्वारा विक्रय करते हैं। जन सम्पर्क अधिकारी जनता के विचारों द्वारा एक सतत अध्ययन कार्यक्रम चलाते हैं।
(ii) श्रमिक सम्बन्ध (Labour Relations)
द्वारा श्रमिक सम्बन्धों के माध्यम से कम्पनी संघ के प्रत्यावेदनों, सामूहिक सौदेबाजी (Collective Bargaining), श्रमिक शिकायतों आदि का निपटारा करते हैं।
श्रमिक सम्बन्ध, प्रबन्धन तथा कर्मचारी प्रतिनिधियों अथवा संघों के मध्य रिश्तों तथा शर्तों को बताते हैं। यह न्यूनतम प्रयास तथा विरोध के, एक दूसरे की सहयोग देने की भावना के साथ संगठन की विभिन्न गतिविधियों में जैसे नियोजन, पर्यवेक्षण, निर्देशन तथा समन्वय आदि में प्रबन्धन तथा कर्मचारियों की प्रवृत्ति का संयुक्त परिणाम है।
आज श्रमिकों तथा संघों की बढ़ती हुयी संख्या को देखते हुए सरकार ने नियोक्ता-कर्मचारी सम्बन्धों पर सक्रिय हस्तक्षेप किया है। अब श्रमिक सम्बन्धों में सरकारी नियमों तथा श्रमिक कानूनों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। श्रमिक सम्बन्धों के समन्वय के लिए बड़े संगठनों में श्रमिक सम्बन्ध विभाग (Labour relations department) होता है। इस विभाग के प्रमुख कार्य निम्न हैं
1. यह विभाग प्रबन्धन तथा श्रम संघों के मध्य आने वाली विभिन्न समस्याओं जैसे कम वेतन, अधिक कार्य-घण्टे, खराब कार्यकारी परिस्थितियाँ, बोनस न मिलना आदि का सम्मानजनक तथा सन्तोषजनक हल निकालने में मदद करता है।
2. श्रमिक संघों के साथ सभी प्रकार का पत्राचार/सम्पर्क बनाता है।
3. श्रमिकों के विवादों का निपटारा करने में सहयोग करता है।
4. विभिन्न वार्ताओं में भागीदारी करता है।
5. कम्पनी के प्रतिनिधि के रूप में कर्मचारी मामलों की मध्यस्थता करना।
6. उद्योग में अनुशासन स्थापित करने में मदद करता है।
7. सरकारी श्रम एजेंसियों से आवश्यक पत्राचार बनाता है।
(ii) कार्मिक प्रबन्धन (Personnel Management)
द्वारा-भर्ती, प्रशिक्षण, सुरक्षा तथा स्वास्थ्य, जॉब-आँकलन (JobEvaluation) तथा वेतन सम्बन्धी समस्याओं आदि पर नियन्त्रण का अध्ययन करते समय प्रबन्धन का उद्देश्य कार्मिक प्रबन्धन द्वारा दक्षता को बढ़ाना है।
जब प्रबन्धन महसूस करता है कि श्रमिक भी इंसान है जिन्हें विभिन्न प्रोत्साहनों द्वारा प्रभावित किया जा सकता है, तब व्यक्तिगत सम्बन्ध बहुत प्रभावी होते हैं। विकासशील प्रबन्धन कर्मचारी के नेतृत्व क्षमता को पहचानता है, कर्मचारी के कौशल व दक्षता को विकसित करता है
और संगठन में सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाता है एवं उनका पर्यवेक्षण करता है। इस प्रकार सगठन में अपनी आवश्यकताओं को कर्मचारी आंशिक रूप से पूरा कर पाता है। इससे कर्मचारी न केवल मानवीय पारितोषिक महसूस करता है बल्कि कम्पनी के लक्ष्यों की पूर्ति में एक बड़ा योगदान देता है।
जब उपरोक्त तीन कार्यक्रम समग्र एवं समन्वित होकर कार्य करते हैं तब औद्योगिक सम्बन्ध अपने सबसे प्रभावास होता है।
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