What is level of management in hindi-प्रबंधन का स्थर क्या है?

हेल्लो दोस्तों आज के इस पोस्ट में आपको level of management in hindi के बारे में बताया गया है की क्या होता है कैसे काम करता है तो चलिए शुरू करते है

प्रबन्धन के स्तर (Levels of Management)

वास्तव में प्रबन्धन के स्तर से तात्पर्य उपक्रम के प्रत्येक कर्मचारी की पहचान, उसके कार्यों, जिम्मेदारियों, अधिकारों तथा निर्णय लेने की सीमा निर्धारित करना है। किसी उपक्रम में प्राय: प्रबन्धन के तीन स्तर पाये जाते हैं

(i) उच्च स्तरीय या शीर्ष प्रबन्धन (Top management)

(ii) मध्यवर्ती या माध्य प्रबन्धन (Middle management)

(iii) निम्न स्तरीय या सुपरवाइजरी प्रबन्धन (Lowest or Supervisory Management)

(i) उच्चस्तरीय या शीर्ष प्रबन्धन

शीर्ष प्रबन्धन किसी उपक्रम में प्रबन्धकों का शीर्षस्थ समूह है। यह किसी संगठन के नीतिगत फैसले लेता है। यह एक छोटा समूह होता है जिसके अन्तर्गत बोर्ड आफ डायरेक्टर्स, मैनेजिंग डायरेक्टर्स, मुख्य कार्यपालक, अध्याल, कार्मिक प्रबन्धक, जनरल मैनेजर, स्वामी तथा शेयर धारक आदि होते हैं। ये ही कम्पनी का उद्देश्य निर्धारित करते हैं

तथा उस उद्देश्य को पाने के लिए संगठन और सिस्टम का डिजाइन करते हैं। ये ही कम्पनी की विशिष्ट एवं बड़ी परियोजनाओं को मंजरी देते हैं। इन्हीं पर उपक्रम की वित्तीय जिम्मेदारी रहती है। ये समय-समय पर सामूहिक रूप से एकत्र होकर उपक्रम में चल रहे कार्यों का अनुश्रवण (Monitoring) कर संगठन को आवश्यक दिशा निर्देश देते हैं।

(ii) मध्यवर्ती या माध्य प्रबन्धन

मध्यवर्ती प्रबन्धन किसी उपक्रम के प्रबन्धन में केन्द्रीय स्थान रखता है। इसका कार्य शीर्ष प्रबन्धन द्वारा लिये गये निर्णयों तथा तय किये कार्यक्रमों को संगठन के माध्यम से पूरा कराना है। यह शीर्ष प्रबन्धन के प्रति जबावदेह होता है।

इसके अन्तर्गत प्राय: अधीक्षक (Superintendents), शाखा प्रबन्धक (Branch managers), प्रधान फोरमैन आदि आते हैं। ये कार्य की रूपरेखा बनाते हैं, गाइड़ करते हैं, निरीक्षण करते हैं, समन्वय बनाते हैं तथा निम्न स्तरीय प्रबन्धन पर नियन्त्रण रखते हैं। ये उच्च तथा निम्न स्तर के प्रबन्धकों के मध्य कड़ी का कार्य करते हैं।

(iii) निम्न स्तरीय या सुपरवाइजरी प्रबन्धन

यह प्रबन्धन का निम्नतम स्तर होता है जिसमें फोरमैन, सुपरवाइजर, कार्यालय अधीक्षक, इंस्पेक्टर आदि आते हैं। इस स्तर का प्रबन्धन, मध्यवर्ती प्रबन्धन के निर्देशों एवं नियन्त्रण के अधीन कार्य करता है। ये कामगारों तथा उनके कार्य का पर्यवेक्षण करते हैं। ये कार्यविधि और प्रक्रियाओं को सुधारते एवं विकसित करते हैं। ये शीर्ष प्रबन्धन की योजनाओं और नीतियों को अन्तिम स्वरूप देते हैं। ये कामगारों की भावनाओं को शीर्ष प्रबन्धकों तक पहुँचाते हैं।

प्रबन्धन की आधुनिक अवधारणा (Modern Concept of Management)

प्रबन्धन की आधुनिक अवधारणा के अन्तर्गत यह माना जाता है कि किसी संगठन में न तो कोई मालिक होता है और न ही कोई मजदूर। संगठन में प्रत्येक का अपना-अपना कार्य है और सभी का कार्य महत्वपूर्ण है।

आधुनिक युग में “मालिक-मजदूर सम्बन्ध’ या किसी से अमुक कार्य करवाना’ जैसे शब्द बिल्कुल महत्वहीन हो गये हैं। काम करवाने का अर्थ है कि संगठन में दो प्रकार के लोग हैं, एक काम करने वाले और दूसरे काम करवाने वाले। इससे भेदभाव की भावना उत्पन्न होती है जो संगठन के उज्जवल भविष्य के लिए ठीक नहीं होती है।

वास्तव में संगठन एक ऐसी व्यवस्था है जो टीम की तरह कार्य करती है और प्रत्येक कर्मचारी एक खिलाड़ी की भाँति होता है और “कप्तान’ तथा “कोच’ के संरक्षण एवं उत्प्रेरण में खेल के मैदान में उतरता है। सारी टीम एकजुट होकर कप्तान के नेतृत्व में खेलती है और खेल के मैदान में पारस्परिक भेदभाव को भूलकर एक सर्वमान्य लक्ष्य (Goal) के लिए मेहनत करते हैं।

किसी संगठन में जब तक ऐसा वातावरण उत्पन्न नहीं होगा, तब तक न तो संगठन में वास्तविक कार्य होगा और न ही संयन्त्र उत्तरोतर प्रगति करेगा। प्रबन्ध की आधुनिक अवधारणा के अनुसार, “प्रबन्ध किसी भी संगठन के विभिन्न घटकों में समन्वय स्थापित करके उनमें निरन्तर कार्यशीलता अथवा गतिशीलता उत्पन्न करने का नेतृत्व-गुण है।”

प्रबन्धन के कार्य (Functions of Management) 

प्रबन्धन एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है जिसमें अनेक कार्य निष्पादित होते हैं। इन कार्यों को निम्न आठ श्रेणियों में बाँटा जा सकता है

  1. नियोजन (Planning)
  2. संगठन (Organising)
  3. नियुक्ति करना (Staffing)
  4. निर्देशन (Directing)
  5. प्रोत्साहन (Motivating)
  6. नियन्त्रण (Controlling)
  7. समन्वय (Co-ordinating)
  8. संचार (Communicating)

उपरोक्त प्रबन्धन कार्यों का संक्षिप्त विवरण निम्न हैं

इन सभी के बारे में आपको अगले पोस्ट में दिया गया है—

level of management in hindi

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