विक्रय पूर्वानुमान और प्रकार-Sales Forecasting and type in hindi

हेल्लो दोस्तों आज के इस पोस्ट में आपको Sales Forecasting and type in hindi के बारे में बताया गया है की क्या होता है कैसे काम करता है तो चलिए शुरू करते है

विक्रय पूर्वानुमान (Sales Forecasting)

पूर्वानुमान को एक ऐसी तकनीक के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो पूर्व में हुये अनुभवों को भविष्य में होने वाली बातों के अनुमान में परिवर्तित करती है। यह उन बलों या कारकों (factors) के महत्व तथा तीव्रता का आँकलन करती है जो भविष्य में एक उपक्रम (Enterprise) की क्रियाकारी परिस्थितियों को प्रभावित करेगी।

“विक्रय पूवानुमान फर्म (Firm) की भविष्य में होने वाली बिक्री की परियोजना का कार्य है। यह प्रदर्शित करती है कि कोई उत्पाद विशिष्ट दरों पर, एक विशिष्ट बाजार में तथा एक विशिष्ट समय में कितना बेचा जा सकता है।”

अमेरिकन मार्केट एसोशियेशन द्वारा विक्रय पूर्वानुमान को निम्न प्रकार परिभाषित किया गया है

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“विक्रय पूर्वानुमान बिक्री का डालर अथवा किसी भौतिक यनिट में किया गया ऑकलन है जो भविष्य के एक विशिष्ट समय के लिए हो, एक प्रस्तावित विपणन योजना या प्रोग्राम के तहत किया गया हो, ऐसी आर्थिक एवं अन्य ताकतों के एक निश्चित समूह के अन्तर्गत किया गया हो जो बाहर से दाब डालती हो तथा जिनके लिए पूर्वानुमान लगाया गया हो।

विक्रय पूर्वानुमान एक ऑकलन है जो कुछ पुरानी जानकारियों, प्रचलित परिस्थितियों तथा भविष्य की सम्भावनाओं पर आधारित होता है। यह एक प्रभावी प्रणाली पर आधारित होता है तथा कुछ विशिष्ट समयावधि के लिए ही मान्य होता है। मार्केट की घटनाओं की गतिशील प्रकृति (Dynamic Nature) के कारण विक्रय पूर्वानुमान लगाना एक सतत् प्रक्रिया है तथा इसमें परिस्थितियों के लगातार मॉनिटरिंग (Monitoring) की आवश्यकता होती है।

विक्रय पूर्वानुमान के प्रकार (Types of Forecasting)

जाणाकारण विक्रय पूर्वानुमान दो प्रकार का हो सकता है

(i) लघु अवधि पूर्वानुमान (Short term forecasting)

(ii) दीर्घ अवधि पूर्वानुमान (Long term forecasting)

लघु अवधि पूर्वानुमान प्राय: तीन माह, छ: माह या अधिकतम एक वर्ष के लिए लगाया जाने वाला पूर्वानुमान है। पूर्वानुमान की समयावधि व्यापार की प्रकृति पर निर्भर करती है। इस प्रकार का पूर्वानुमान तब लगाया जाता है जब बाजार में उत्पाद की माँग प्रत्येक माह बदलती रहती हो

दीर्घ अवधि पुर्वानमान प्राय: 5 से 10 वर्ष तक के लिए या फिर कभी-कभी 20 वर्ष तक के लिए लगाया जाता है। 10 वर्ष से अधिक समय के लिए लगाया गया पूर्वानुमान प्राय: अनिश्चित माना जाता है। परन्तु अनेक उद्योग/उपक्रम, जैसे जहाज (Ship) निर्माण, पेट्रोलियम संशोधन कारखाना (Petroleum refinery), विद्युत ऊर्जा उत्पादन (Generation of electricity) आदि, जहाँ दीर्घ अवधि पर्वानमान लगाना इसलिए आवश्यक होता है क्योंकि उनमें यन्त्रों/उपकरणों/साजसज्जा आदि पर आयी प्रारम्भिक लागत बहुत अधिक होती है।

पूर्वानुमान के उद्देश्य (Objectives of Forecasting)

(a) लघु अवधि पूर्वानुमान के उद्देश्य (Objectives of Short Term Forecasting)

(i) उचित उत्पादन नीति (Production policy) तैयार करना जिससे कम अथवा अधिक उत्पादन जैसी समस्या न हो।

 (ii) कच्चे माल की आपूर्ति पर नियन्त्रण रखना जिससे अनावश्यक भण्डारण न करना पडे।

(iii) मशीनरी का अभीष्टतम उपयोग (Optimum use) करना जिससे मशीनों की उच्चतम दक्षता बनी रहे।

(iv) श्रमिकों की सतत उपलब्धता (regular availability) बनाये रखना जिससे कम अथवा अधिक उत्पादन की परिस्थितियों में आवश्यक श्रमिक उपलब्ध रहे।

(v) मूल्य नीति निर्धारण (price policy formulation) करना जिससे की बाजार में उत्पाद की मॉग कम अथवा अधिक होने पर उसके मूल्य में बहुत अधिक उच्चावचन (fluctuation) न हो। (vi) लघु अवधि की वित्तीय आवश्यकताओं (short term financial requirement) का पूर्वानुमान लगाना जिससे कि ससमय वित्त की उपलब्धता बनाये रखी जा सके।

(vii) बिक्री लक्ष्य (Sales target) को निर्धारित करना जिससे की विभिन्न क्षेत्रो की मांग के अनुसार आपूर्ति (supply) बनाने रखी जा सके इसी से बाद में बिक्री निष्पादन के आँकलन तथा नियन्त्रण का आधार प्राप्त होती है

(b) दीर्घ अवधि पूर्वानुमान के उद्देश्य (Objectives of longterm forecasting)

 (i) संयन्त्र की क्षमता (Plant capacity) का निर्धारण करना जिससे की भविष्य में उत्पाद की  मांग के अनुरूप आपूर्ति  सुनिश्चित की जा सके।

(ii)श्रमशक्ति(Manpower) का नियोजन करना जिससे भविष्य में सयंत्र की श्रमशक्ति की आवश्यकता को उनि से पूरा किया जा सके।

(iii)रोकड़ प्रवाह  (Cash in Flow) का आँकलन करना जिससे उपक्रम की क्रेडिट पॉलिसा (Credit policy) तैयार की जा सके  इससे रोकड़/उधार अनपात का भी पता चलता है।

(iV) लाभाश नीति (Dividend Policy) ज्ञात करना तथा बिक्री पर शुद्ध लाभ अनुपात द्वारा शुद्ध लाभ का अनुमान लगाना।

(v) लम्बी समयावधि के लिए उत्पादन नीति बनाना।
(vi) लम्बी समयावधि के लिए संगठन की वित्तीय आवश्यकताओं का आँकलन करना तथा उसके अनुसार पूँजी जटाने हेतु नीति बनाना।

 (vii) व्यय पर बजट नियन्त्रण स्थापित करना जिससे कि संगठन की आय तथा व्यय में सन्तुलन बना रहे। इसके लिए सगठन में होने वाली सभी गतिविधियों को चिन्हित करके उसके अनुरूप बजट निर्धारित किया जाता है।

विक्रय पूर्वानुमान का महत्व (Importance of Sales Forecasting) :

जॉन डी लूथ के अनुसार, “एक अच्छा विक्रय पूर्वानुमान निर्विवाद रूप से सबसे महत्वपूर्ण एकल विनियोजन औजार है”।

पर्वानमान लगाना वास्तव में एक अन्दाजा लगाने की कला है कि दी गई परिस्थितियों में क्रेता (buyers) क्या करना पसंद करेंगे। किसी फर्म द्वारा कराया गया बाजार अनुसंधान (research) तथा बाजार के ताजा चलन तथा अनुभव का विश्लेषण हा विक्रय पूर्वानुमान का आधार होता है।

विकय पूवार्नुमान बहुत यथार्थ (accurate) या सटीक होना चाहिए क्योंकि उत्पादन एवं स्टॉक निर्धारण योजनाएँ विघटित होने वाली सभी घटनाएँ इसी पर आधारित होती है। यह बाजार में होने वाली समन्यवित एव लक्ष्यनिर्देशित प्रणाली को विकसित करने का आधार होता है

यदि अधिक यथार्थ विक्रय बजट ,उत्पादन तथा क्रम योजना तय की जानी हो तो विक्रम पूर्वानुमान अत्यंत आवश्यक होती है

विक्रय पूर्वानुमान व्यापारिक गतिविधियों के अनेक संभागो(segments) के क्रियाकलाप तथा उत्पादकता के आकलन का आधार प्रस्तुत करती है  

विक्रय पूर्वानुमान से फर्म को यह भी पता चलता है कि किस उत्पाद का उत्पादन रोकना है किसका बनाये रखना है तथा किसके उत्पादन में वृद्धी करनी है साथ ही यह भी पता चलता है की कौन सा उत्पादन उन्पन्न करना है

विक्रय पूर्वानुमान से बिक्री लक्ष्य निर्धारित करने तथा तथा उत्पाद के भौतिक वितरण परिवहन प्रचार प्रसार बिक्री कार्य बल तथा मूल्य निर्धारण करने में मदद मिलती है इस प्रकार को संक्षेप में कहा जा सकता है की समस्त बाजार गतिविधिया विक्रय पूर्वानुसार के चारो ओर ही घुमती है विक्रय पूर्वानुमान के चारो ओर ही घुमती है
reference-https://toughnickel.com/business/Classification-of-Sales-Forecasting

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