हेल्लो दोस्तों आज के इस पोस्ट में आपको styles of leadership in hindi के बारे में बताया गया है की क्या होता है कैसे काम करता है तो चलिए शुरू करते है
Contents
- नेतृत्व के तरीके (Styles of Leadership)
- (i) सत्ताशील तरीका (Authoritative style)
- (ii) लोकतंत्रीय तरीका (Democratic style)
- iii) कार्य केन्द्रित तरीका (Task centred style)
- (iv) कामगार केन्द्रित तरीका (Employees centred style)
- (v) परोपकारी तरीका (Benevolent style)
- (vi) हस्तक्षेपरहित व स्वतन्त्र बागडोर युक्त नेतृत्व (Self dispensing or free rein or laiseez faire leadership)
- प्रबन्धक : एक नेता (Manager as a Leader)
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नेतृत्व के तरीके (Styles of Leadership)
किसी लीडर विशेष के संगठन में काम करने के तरीके को ही “नेतृत्व का तरीका’ (Leadership style) कहते हैं। कोई लीडर किसी समस्या के समाधान के लिए जब अपने अधीनस्थों के साथ विचार विमर्श करता है तो उसका व्यवहार कैसा रहता है, वह अपने दायित्वों एवं अधिकारों का कैसे निर्वाह करता है? यह व्यवहार उसका तरीका (Style) कहलाता है। लीडर का व्यवहार या स्टाइल ऐसा होना चाहिए जो संगठन के प्रत्येक सदस्य को प्रभावित कर सके। कुछ प्रमुख प्रकार के नेतृत्व के स्टाइल निम्नलिखित हैं
(i) सत्ताशील तरीका (Authoritative style)
(ii) लोकतंत्रीय तरीका (Democratic style)
(iii) Jopel anfisa alichot (Task centred style)
(iv) कामगार केन्द्रित तरीका (Employee centred style)
(v) परोपकारी तरीका (Benevolent style)
(vi) हस्तक्षेप रहित या स्वतंत्र बागडोर का तरीका (Self dispensing or free-rein or laissez-faire style)
(i) सत्ताशील तरीका (Authoritative style)
नेतृत्व के इस तरीके में सभी निर्णय लीडर द्वारा लिये जाते हैं तथा अधीनस्थों को उन निर्णयों का अनुपालन करना होता है। इस तरीके में नेतृत्व किसी की सलाह नहीं लेता तथा सर्वाधिकार अपने पास रखता है। वह अपनी योजनाओं पर अपने अधीनस्थों से विचार विमर्श नहीं करता। इस प्रकार के नेतृत्व में लीडर के मुख्य गुण निम्न प्रकार हैं
(a) ये दृढ़ निश्चयी, दूसरों पर हावी होने वाले तथा उग्र स्वभाव के होते हैं।
(b) ये समान व्यवहार में विश्वास नहीं करते तथा अधीनस्थ लोगो से आत्मियता अथवा नजदीकियाँ नहीं रखते।
(c) उनके मतानुसार सबसे अधीनस्थ वह होता है जो कोई सवाल किये बगैर आदेशों का पालन सुनिश्चित करे। (d) वे अपने अधीनस्थों को उनके सोचने, समझने, निर्णय लेने एवं व्यवहार में हस्तक्षेप करने की इजाजत नहीं देते।
(ii) लोकतंत्रीय तरीका (Democratic style)
एक लोकतंत्रीय नेतृत्व या लीडर अपने अधीनस्थों के साथ अच्छे मानवीय सम्बन्ध बनाने तथा सभी स्तरों पर उनकी सहभागिता सुनिश्चित करने को बढ़ावा देता है। इस तरीके में लीडर के प्रमुख गुण निम्न हैं
(a) अपने अधीनस्थों से सलाह तथा विचार विमर्श करते हैं, उनके विचारों को ग्रहण करके उनका पर्यवेक्षण
(Supervision) करते हैं।
(b) अपने अधीनस्थों की साझेदारी को बढ़ावा देता है और मजबूत टीम बनाता है।
(c) बहुमत का आदर करता है।
(d) अपने अधीनस्थों से भविष्य की योजनाओं पर विचार विमर्श करता है।
लोकतन्त्रीय तरीके से अधीनस्थों को सोचने एवं कार्य करने के लिए बढ़ावा मिलता है। यह सुपरवाइजर तथा कामगारों के मध्य अच्छे सम्बन्धों को बढ़ावा देता है। यह कामगारों का आत्मविश्वास बढ़ाता है।
iii) कार्य केन्द्रित तरीका (Task centred style)
इस तरीके में उत्पादन गतिविधियों का नेतृत्व कार्य तथा उत्पाद पर विशेष प्रभाव पड़ता है। व्यक्ति अपने कार्यों के अनुरूप अपने को ढाल लेते हैं। मानवीय सम्बन्ध और आत्मीयता न्यनतम हो जाती है। केवल कार्य सम्बन्धी आदेश तथा जानकारियाँ ही सिस्टम द्वारा प्रेषित होती हैं। काम से हटकर अधीनस्थों के विकास और कल्याण की बात बहुत कम होती है। व्यक्ति उत्पादन के लिए एक उपकरण (Instrument) मात्र बनकर रह जाता है।
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(iv) कामगार केन्द्रित तरीका (Employees centred style)
इस तरीके के अन्तर्गत सुपरवाइजर अपने कामगारों को कोई कार्य सौपते हैं तथा उसके लिए आवश्यक अधिकार भी देते हैं। नेतृत्व की काबलियत इस बात में है कि अपने कामगारों की कार्य कशलता का पता रहना चाहिए और उसके लायक ही कार्य सौपना चाहिए। एक सुपरवाइजर को अपने आप में तथा अपने अधीनस्थ कर्मचारियों में पूर्ण आत्मविश्वास होना चाहिए जिससे वे अपने विकास, पहचान और उन्नति के लिए आर अधिक मेहनत कर सके।
(v) परोपकारी तरीका (Benevolent style)
इस तरीके में मानवीय भावनाओं को महत्व दिया जाता है। सपरवाइजर बड़े भाई जैसा व्यवहार करता है। एक व्यक्ति नहीं बल्कि पूरा समूह संगठन में मुख्य भूमिका निभाता है तथा इनके सदस्यों में दोस्ताना एवं मधुर व्यवहार अच्छा माहौल बनाता है। सुपरवाइजर अपने कामगारों का उत्साह तथा मनोबल बढ़ाता है। वह व्यक्तिगत रूप से निर्देशन करता है, उनकी समस्याएं सुनता है और विवादों को निपटाता है। पूरा समूह अपने सपरवाइजर का बहुत इज्जत एवं प्यार देता है।
(vi) हस्तक्षेपरहित व स्वतन्त्र बागडोर युक्त नेतृत्व (Self dispensing or free rein or laiseez faire leadership)
इस नेतृत्व में प्रबन्धक अपने कामगारों को सभी प्रकार के अधिकारों को सौंप देता है। वह केवल अपने कामगार को कार्य बताता है। उसके बाद उस कार्य को कब तथा कैसे पूरा करना है इसका दायित्व कामगार का है। यह तरीका तब बहुत असरकारक होता है जब पढ़ा लिखा एवं समर्थ कामगार यह जिम्मेदारी लेने के लिए उत्सुक हो।
इस तरीके से कामगार को अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिलता है जिससे भविष्य में उसे एवं संगठन को लाभ होता है। इसमें एकमात्र नुकसान यह है कि जब दो कामगार के हित टकराते हो और अपने को साबित करने के लिए वे झगड़ा करने पर उतारू हो जाए।
प्रबन्धक : एक नेता (Manager as a Leader)
प्रभावी प्रबन्धन के लिए नेतृत्व (Leadership) की आवश्यकता होती है। प्रबन्धन तथा नेतृत्व की व्यवहारिक गतिविधियों (Behavioural Functions) को पृथक-पृथक करना अत्यन्त कठिन होता है। ऐसा इसलिए है कि संगठन सम्बन्धी किसी भी विषय को प्रभावित करने वाला कोई कार्य कुछ मायनों में नेतृत्व का ही कार्य कहलाता है।
एक प्रबन्धक (Manager) जहाँ उपक्रम की विभिन्न गतिविधियों, जो एक विशिष्ट परिणाम की तरफ निर्देशित होती है, को संगठित, निर्देशित तथा नियन्त्रित करता है, वहीं दूसरी तरफ एक नेता अपने सहयोगियों में भरोसा तथा आत्मविश्वास की भावना जागृत करता है, उनसे अधिकतम सहयोग प्राप्त करता है तथा संगठित प्रयासों में उनकी गतिविधियों को निर्देशित (Guides) करता है।
विशेष रूप से प्रबन्धकीय नेतृत्व (Managerial Leadership) एक व्यवहार है जो कार्य (Job) के लिए अपेक्षित निष्पादन से आगे बढ़कर, स्वेच्छा से ऐसे अनुयायी (Follower) बनाता है जो नयी चुनौतियाँ स्वीकार करने में हिचकिचाते नहीं है।
वास्तव में संगठन के रोजमर्रा के निर्देशों (Routine Directives) के यांत्रिक अनुपालन (Mechanical Compliance) से ऊपर उठकर एक प्रभावशाली वृद्धि करना ही नेतृत्व (Leadership) है। एक प्रबन्धक का नेतृत्वपूर्ण व्यवहार ही प्रभावी तथा अप्रभावी संगठन के बीच अन्तर स्थापित करता है। प्रबन्धकीय नेतृत्व के एक नेता के गुण तथा एक प्रबन्धक का कौशल संनिहित होते हैं।
प्रबन्धक को एक नेता होना इसलिए भी आवश्यक होता है क्योंकि मानवीय सन्तुष्टिकरण (Human Satisfaction) तथा संगठनात्मक प्रभावीपन (Organizational Effectiveness) व लक्ष्य निष्पादन को और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए प्रबन्धकीय तथा नेतृत्व की भूमिकाओं को एक साथ लाना जरूरी होता है।
एक अच्छे प्रबन्धक नेतृत्व को प्राय: उसके औपचारिक लक्ष्य निष्पादन तथा व्यक्तिगत एवं सामूहिक लक्ष्य निष्पादन के अनौपचारिक आधार दोनों से आँकलित किया जाता है।
reference-https://blog.hubspot.com/marketing/leadership-styles
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