हेल्लो दोस्तों ! आज इस पोस्ट में जावा factors affecting wages in hindi क्या होता है यह किस लैंग्वेज से बना होता है इसके फीचर क्या क्या होते है आज इस पोस्ट में बताया जायेगा तो चलिए जावा java को समझते है
पारिश्रमिक प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Wages)
किसी श्रमिक को मिलने वाले पारिश्रमिक को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक निम्न हैं
1.माँग एवं आपूर्ति की स्थिति (Demand & Supply Position)-विशिष्ट ज्ञान एवं कौशल वाले श्रमिक तथा आपूर्ति की स्थिति, पारिश्रमिक की दर को प्रभावित करती है। यदि विशिष्ट कौशल वाले श्रमिक पर्याप्त सख्या में उपलब्ध हो तो पारिश्रमिक दर कम होगी।
2.कानूनी प्रावधान (Legal Provision)-विभिन्न कानूनी प्रावधान, जो सरकार द्वारा बनाये गये हैं अमित पारिश्रमिक को प्रभावित करते हैं। न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी को निर्धारित करना है। कम्पनी एक्ट 1956 पब्लिक लिमिटेड कम्पनियों के निदेशकों के पारिश्रमिक को निर्धारित करता है। कुछ अन्य कानूनी प्रावधान निम्न हैं जो पारिश्रमिक के निर्धारण पर प्रभाव डालते हैं-
बोनस एक्ट 1965
– ग्रेच्यूटि एक्ट 1972
– कर्मचारी राज्य बीमा एक्ट 1948
– कर्मचारी प्रॉविटेंड फंड, फैमिली पेंशन फंड तथा डिपॉजिट लिंक्ड इंश्योरेंस एक्ट 1992
– फैक्ट्री एक्ट 1948 (यह ओवरटाइम की पारिश्रमिक दरों को निर्धारित करता है)
3.सौदेबाजी की क्षमता (Capacity to Bargain)-प्रबन्धन तथा श्रमिक संघों के बीच हुयी सामूहिक सौदेबाजी की शर्ते श्रमिकों के पारिश्रमिक को प्रभावित करती है। यदि श्रमिक संघ मजबूत होगें तो पारिश्रमिक भी उच्च होगी।
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4.जीवन-निर्वाह का मूल्य (Cost of Living)-बहुत से उद्योगों में पारिश्रमिक के जीवन-निर्वाह के मूल्यों से सीधे सम्बन्ध होते हैं जो श्रमिक वर्ग के लिए निर्वाह मजदूरी सुनिश्चित करते हैं।
5.कार्य की प्रकृति/जोखिम (Nature of the Work/Risk Involved)-कुछ उद्योग बहुत थका देने वाले (जैसे लोहारशाला), कुछ खतरनाक (जैसे कोयले की खान आदि) कुछ अस्वास्थ्यकारी एवं प्रदूषण भरे होते हैं। इस प्रकार के कार्यों के लिए बहुत अधिक शारीरिक तथा मानसिक विकृति होती है। अत: इनमें काम करने वाले श्रमिकों का उच्च पारिश्रमिक मिलना चाहिए।
6.उद्योग की पारिश्रमिक प्रदान करने की स्थिति (Organisation’s Ability and Willingness to Pay)-उद्योग अन्यों की तुलना में अधिक पारिश्रमिक देते हैं ऐसा वे अधिक योग्य तथा सक्षम कर्मचारियों को अपन उद्या में आर्कषित करने के लिए करते हैं। कुछ उद्योग नये कर्मचारियों को न्यूनतम संभव पारिश्रमिक ही देते हैं।
7.नियमित तथा अनियमित रोजगार (Regular & Irregular Employment)– कछ व्यवसाया जा निर्माण व्यवसाय आदि में कार्य तदर्थ तथा अनिश्चित प्रकृति का होता है। ऐसे व्यवसायों में पारिश्रमिक की दरे अन्य व्यवसायों की तुलना में अधिक होती है
8.पूरक आय (Supplementary Income)-कुछ उद्योगों अथवा क्षेत्रों में श्रमिक कम पारिश्रमिक केवल स्वीकार कर लेते हैं क्योंकि उसे अन्य क्षेत्रों से पूरक आय होने की सम्भावना होती है। जैसे किसी उद्योग के साथ-साथ उसके परिजन के लिए भी कुछ कार्य हो सकते हैं जिससे श्रमिक को अतिरिक्त अथवा पूरक आय होती है।
9.कार्य-समय (Working Hours)-प्रतिदिन कार्य घण्टे प्रति सप्ताह कार्य दिवसों की संख्या पारिश्रमिकपारिश्रमिक पर प्रभाव डालते है
10.पदोन्नति की सम्भावनाएँ (Prospects of Promotion)-कभी-कभी कर्मचारी कम पारिश्रमिक पर कार्य करने के लिए केवल इसलिए तैयार हो जाता है क्योंकि वहाँ कार्य (Job) की सुरक्षा की गारण्टी होती है तथा भविष्य में पदोन्नति की अधिक सम्भावनाएँ होती हैं।
11.प्रशिक्षण का समय तथा लागत (Cost and Time of Training)-विभिन्न व्यवसायों में श्रमिकों के पारिश्रामक का आँकलन करते समय प्रशिक्षण का समय तथा खर्चे भी दृष्टिगत रखे जाते हैं।
reference-https://www.yourarticlelibrary.com/employee-management/wages/top-8-factors-
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