अधीनस्थ, समकक्ष तथा अधिकारियों के साथ सम्बन्ध-Relations with Subordinates Peers and Superiors in hindi

हेल्लो दोस्तों आज के इस पोस्ट में आपको Relations with Subordinates Peers and Superiors in hindi  के बारे में बताया गया है की क्या होता है कैसे काम करता है तो चलिए शुरू करते है

अधीनस्थ, समकक्ष तथा अधिकारियों के साथ सम्बन्ध (Relations with Subordinates, Peers and Superiors)

1. सुपरवाइजर तथा अधीनस्थों के मध्य सम्बन्ध (Relation between Supervisor and Subordinates)-कार्यस्थल पर सुपरवाइजर तथा अधीनस्थों के मध्य सम्बन्धों को स्पष्ट रूप से परिभाषित होना चाहिए। सुपरवाइजर की प्राथमिक जिम्मेदारी प्रत्येक कर्मचारी के मध्य अच्छे कार्यकारी बन्ध को बनाना तथा उसे बनाये रखना है।

श्रमिकों तथा सुपरवाइजर के सम्बन्धों को अच्छा बनाये रखने के लिए विशिष्ट प्रोटोकाल स्थापित करना चाहिए। कम्पनी की नीतियों को अपनाने तथा सुपरवाइजर के साथ इज्जत से पेश आने के लिए मानसिक रूप से तैयार करना आवश्यक होता है। इसके लिए निम्न कारका पर अवश्य ध्यान देना चाहिए

(i) विश्वास (Trust)-जब किसी अधीनस्थ को कोई कार्य दिया जाता है तो सपरवाइजर को उस पर विश्वास करना चाहिए तथा उसे सुपरवाइजर पर विश्वास करना चाहिए। सुपरवाइजर को चाहिए कि वह अपने अधीनस्थों के साथ एक इमा भेदभाव रहित, विश्वसनीय तथा नीतिगत व्यवहार करे जिससे उनके मध्य एक विश्वास से परिपूर्ण सम्बन्ध स्थापित

(ii) संचार (Communication)-सुपरवाइजर तथा अधीनस्थ के मध्य सौहार्द्धपर्व सम्बन्ध संचार में महत्वपूर्ण अदा करते हैं। दोनों के मध्य संवाद स्पष्ट होना चाहिए तथा लगातार बना रहना चाहिए। दोनों को अपने विचार की प्रतिक्रिया मिलने की सम्भावना के डर के, व्यक्त करने में कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए। दोनों एक दूस एवं औचित्यपूर्ण आलोचना करने अथवा सुनने के लिए भी मानसिक रूप से तैयार रहने चाहिए।

कम्पनी अथवा सग को प्राप्त करने तथा भविष्य की रूपरेखा बनाने के लिए अपने अधीनस्थ का कार्यकारी सहयोग प्राप्त करना अत्या है। इन उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु नये कौशल (New Skills) को प्राप्त करने की इच्छा को व्यक्त करने के लिए चाहिए। सुपरवाइजर को स्वयं भी उत्साही तथा सकारात्मक सोच का होना चाहिए।

 (iii) स्पष्ट भूमिका (Clarification of Roles) सुपरवाइजर तथा अधीनस्थ के मध्य सम्बन्ध कम्पनी में उनकी सापेक्ष स्थितियों पर निर्भर करती है। एक सुपरवाइजर को अपने अधीनस्थ कर्मचारी का नेतृत्व (Leadership) करना चाहिए क्योंकि यह उसका प्रोफेशनल अधिकार तथा दायित्व होता है।

इसी प्रकार अधीनस्थों को भी अपनी भूमिका को समझना चाहिए तथा दिये गये निर्देशों का पालन करने के लिए तैयार रहना चाहिए चाहे वह व्यक्तिगत रूप से उनसे सहमत हो अथवा नहीं हो। परन्तु इसका अर्थ यह भी नहीं है कि वह अपने विचारों से सुपरवाइजर को अवगत ही न कराये। उनके विचारों को दृष्टिगत् रखते हार अन्तिम निर्णय लेने का अधिकार सुपरवाइजर का ही होता है।

(iv) सीमायें (Boundaries)—सुपरवाइजर तथा अधीनस्थ के मध्य रिश्ते में एक सीमा तय होनी चाहिए। यह सीमा पूर्ण रूप से पेशेवर (Professional) होनी चाहिए। यद्यपि अगर कम्पनी का कर्मचारियों के साथ सम्बन्धों को लेकर कोई विशेष प्रोटोकोल हो या न हो परन्तु अपने अधीनस्थ के साथ जरूरत से ज्यादा हंसी मजाक या खुलापन नहीं होना चाहिए और व्यवहार में एक औपचारिकता अवश्य बनी रहनी चाहिए।

इससे सुपरवाइजर पर पक्षपातपूर्ण व्यवहार करने के आरोप नहीं लगते। इससे लिंग के आधार पर किसी का उत्पीड़न करने का भी आरोप नहीं लगता। सुपरवाइजर को अपने अधीनस्थों के साथ व्यक्तिगत तौर पर इतना लगाव नहीं रखना चाहिए जिससे कि उसके फैसलों पर असर पड़ने लगे।

2. सुपरवाइजर तथा उनके समकक्षों में सम्बन्ध (Relation between Supervisor and his Peers)

सुपरवाइजर को अपने समकक्षों के साथ एक प्रभावी तथा अच्छे कार्यकारी सम्बन्ध बनाये रखना अत्यन्त आवश्यक होता है। यह सुपरवाइजर को अपने कार्य निर्वाह में सफलता प्राप्त करने के लाभकारी होता है। इन सम्बन्धों को सुदृढ़ एवं प्रभावशाली बनाने के लिए निम्न कारकों पर अवश्य ध्यान देना चाहिए

(i) समान लक्ष्यों की तलाश (Search for Common Goals)—सुपरवाइजर को समान लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए अपने समकक्षों के साथ मिलकर कार्य करना चाहिए और जिस कार्य में वह बेहतर योगदान दे सकता है, अवश्य देना चाहिए। यदि उत्कृष्ट ग्राहक सेवा देना कठिन हो

तब आपस में बैठकर इस पर विचार करना चाहिए तथा उन कारणों को खोजना चाहिए जो ग्राहक सेवा को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए ग्राहक सन्तुष्टि का एक महत्वपूर्ण कारक क्रय-आदेश (Purchase Order) मिलने के एक माह के अन्दर उत्पाद की आपूर्ति सुनिश्चित करना है।

इसके लिए सुपरवाइजर को आगे बढ़कर उस उत्पाद के समस्त आपूर्ति सिस्टम को समझना होगा। इसके साथ ही यह भी समझना होगा कि कौन सी चीजें उनके सीधे नियन्त्रण में है तथा कौन सी चीजें अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होती है। जिन अवयवों पर सीधा नियन्त्रण है उन्हें उत्साहपूर्वक तथा तेजी से पूरा करना चाहिए तथा जिन पर अप्रत्यक्ष नियन्त्रण है, उन्हें पूरा करने में अपने समकक्षों (Peers) को सहयोग करना चाहिए।

(ii) विश्वास तथा सम्मान स्थापित करना (Establish Trust and Respect)-अपने समकक्षों के साथ सुपरवाइजर को विश्वास तथा सम्मान का वातावरण बनाना चाहिए। समय-समय पर यह विश्वास तथा सम्मान प्रदर्शित करने से भी यह वातावरण प्रभावी रूप से बनता है। यह विश्वास तथा सम्मान निम्न प्रकार प्रदर्शित होता है

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(a) कभी भी अपने समकक्ष को सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं बनाना चाहिए अगर समकक्ष की कार्यप्रणाली से कोई समस्या है तो पहले उसके साथ बैठकर इस विषय पर वार्ता करनी चाहिए। उसके बाद ही उसे स्टाफ मिटिंग या प्रबन्धन

के समक्ष रखना चाहिए।

 (b) हमेशा पेशेवर (Professional) रवैया अपनाना चाहिए तथा समकक्ष के पीठ पीछे चुगली या शिकायत से बचना चाहिए।

(c) हमेशा अपने किये गये वादों पर डटे रहे तथा तय समय पर कार्य पूरा करें।

(d) किसी भी प्रकार के विवाद को तुरन्त निपटाने की कोशिश करनी चाहिए। अनसुलझे विवादों से सम्बन्धों में कड़वाहट आती है।

(e) अपने समकक्षों के लिए सदैव उपलब्ध रहना चाहिए। अपने समकक्ष को सुनने, विचार करने, बहस करने तथा उसक साथ नीति बनाने के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए।

 (iii) सहयोग के लिए तैयार रहना (Pursue Collaboration)-सहयोग (Collaboration) के लिए तत्पर रहना चाहिए

हमेशा स्वयं से यह कहना चाहिए

अथात् में कैसे अपने समकक्षों के साथ मिलकर, संगठन के लाभ के लिए, सर्वोत्तम का अपने समकक्षों के साथ निम्न प्रकार से सहयोग किया जा सकता है

(a) लक्ष्यों, भूमिकाओं तथा उत्तरदायित्वों के सम्बन्ध में स्पष्ट रखें।

(b) बजट, संसाधन अथवा अन्य विचार विमर्श करते समय अपने संगठन के हितों को सर्वोपरि से

 (c) सभी प्रकार के ई-मेल (E-mail) या वॉइसमेल (Voicemail) आदि का ससमय जवाब देना चाहिए से सम्बन्धित विषयों को अपने विषयों के समान ही प्राथमिकता दें। (

(d) अपनी सफलताओं को अपने समकक्षों के साथ मिलकर मनायें।

(iv) दोषारोपण न करें (No Blame Game)—दोषारोपण न करें। अगर कुछ गलत हो रहा है तो सुपरवाइल कि वो अपने समकक्षों के साथ विचार विमर्श करें और प्रत्येक परिस्थिति को एक सीखने वाला अनुभव (learnings की तरह माने। पहले सही स्थिति का आँकलन करे। क्या सही और क्या गलत है, इसका विश्लेषण करें और अली क्या किया जा सकता है जिससे गलती को सुधारकर आगे बढ़ा जा सकता है, इस बात पर अपने समकक्षों के साथ सहमती बनाये।

सुपरवाइजर अपने आपको परिस्थितियों का शिकार (Victim) जैसा प्रस्तुत न करे। प्रत्येक बात के लिए दूसरे को कहना व्यक्ति को स्वयं कमजोर साबित करता है। अत: कर्मियों को सुधारकर तथा भविष्य में ऐसी गलती दोबारा न हो सुनिश्चित करने पर ही सुपरवाइजर स्वयं अपनी तथा अपने समकक्षों की नजरों से इज्जत पा सकता है।

(v) एक दूसरे से जुड़ने के लिए समय निकालना (Make Time to Bond with Each Other)—सुपरवाइजर को अपने समकक्षों के साथ थोड़ा समय बिताना चाहिये। उनकी पसन्द, नापसन्द तथा शौक (Hobbies) आदि का ध्यान रखना चाहिए। कार्य समय के अलावा भी उनके साथ व्यक्तिगत सम्बन्धों पर विचार करना चाहिए, घूमना फिरना चाहिए और लंच/डिनर आदि करना चाहिए। इससे एक दूसरे पर विश्वास पनपता है तथा विपरीत परिस्थितियों में बेहतर सहयोग प्राप्त होता है।

3. सुपरवाइजर तथा अधिकारियों के मध्य सम्बन्ध (Relation between Supervisor and Supervisors)

सुपरवाइजर अपने अधीनस्थों तथा अधिकारियों के मध्य कड़ी का कार्य करता है इसीलिए यह आवश्यक है कि सुपरवाइजर तथा अधिकारियों के मध्य विश्वसनीय तथा मधुर सम्बन्ध होने चाहिए। इन सम्बन्धों को और बेहतर बनाने के लिए निम्न बिन्दुआ पर विचार करना चाहिए।

(a) स्पष्टता (Clarity)—सुपरवाइजर तथा अधिकारियों के मध्य सम्बन्ध स्पष्ट रहने चाहिए। सुपरवाइजर श्राम इच्छाओं तथा सुझावों को अधिकारियों को बिना किसी पूर्वाग्रह तथा लाग-लपेट के बताता है तथा प्रबन्धन की नीतियों तथा को अधिकारी अपने सुपरवाइजर को बताता है। अत: आवश्यक है कि उनके मध्य स्पष्ट संवाद बना रहे।

(b) विश्वसनीयता (Reliability)-अधिकारियों एवं सुपरवाइजरों के मध्य सम्बन्धों की विश्वसनीयता बना रहना अधिकारी को अपने सुपरवाइजर पर तथा सुपरवाइजर को अपने अधिकारों पर विश्वास करना चाहिए।

(c) समय की पांबदी (Punctuality of Time)–यदि अधिकारी तथा सपरवाइजर दोनों समय की पाबदा तो उनके सम्बन्धों में मधुरता बनी रहती है। सुपरवाइजर समय पर वांछित उत्पादन कार्य पूर्ण कराकर आधिका तथा अधिकारी अपने स्तर से लिये जाने वाले फैसले ससमय ले तो उनमें एक दसरे के प्रति सम्मान बना र

(d) समन्वय (Coordination)-अधिकारी तथा सुपरवाइजर के मध्य अच्छा समन्वय होना चाहिए। गणवत्ता को बढ़ाने के लिए तथा टूट फूट और स्क्रेप (Scarp) में कमी लाने के लिए दोनों को प्रयासरत रहना चाहिए यह सम्भव हो पाता है जब दोनों में बेहतर समन्वय हो।

reference-https://www.sakshieducation.com/StoryP.aspx?

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