आन्दोलन, तालाबन्दी, धरना तथा घेराव-Agitations,Lockouts, Picketing and Gherao

हेल्लो दोस्तों आज के इस पोस्ट में आपको Agitations Lockouts Picketing and Gherao के बारे में बताया गया है की क्या होता है कैसे काम करता है तो चलिए शुरू करते है

आन्दोलन, हड़ताल, तालाबन्दी, धरना तथा घेराव (Agitations, Strikes, Lockouts, Picketing and Gherao)

आन्दोलन (Agitation)

“आन्दोलन संगठित सत्ता तंत्र या व्यवस्था द्वारा शोषण और अन्याय किये जाने के बोध से उसके खिलाफ पैदा हुआ संगठित और सुनियोजित अथवा स्वतः स्फूर्त (Self-energetic) सामूहिक संघर्ष है। इसका उद्देश्य सत्ता या व्यवस्था में सुधार या परिवर्तन होता है। यह राजनीतिक सुधारों या परिवर्तन की आकांक्षा के अलावा सामाजिक, धार्मिक, पर्यावरणीय या सांस्कृतिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए भी चलाया जाता है।

उदाहरण के लिए चिपको आन्दोलन पेड़ों की रक्षा के लिए चलाया गया आन्दोलन है।

आन्दोलन एक सामूहिक संघर्ष है किन्तु संघर्ष तथा आन्दोलन एक ही चीज नहीं है। संघर्ष रोजमर्रा की जिंदगी का अभिन्न हिस्सा है। वर्गों में बंटे और शोषण पर टिके समाज में व्यक्ति हर रोज अनगिनत रूपों में संघर्ष करते हैं। यह संघर्ष व्यक्ति के सामूहिक या वर्ग संघर्ष का हिस्सा भी होता है लेकिन इन सबको आन्दोलन नहीं कहा जा सकता है। आन्दोलन चाहे वह संगठित (organised) हो या स्वत: स्फूर्त (Self-energetic), संघर्ष के विकास की एक अवस्था है जहाँ संघर्ष का स्वरूप आम (common) हो जाता है; संघर्ष व्यक्तिगत नहीं रह जाता है, सामूहिक हो जाता है।

तालाबन्दी (Lockout)

नियोक्ता या उद्योगपति द्वारा कर्मचारियों से कार्य करवाना बंद करना, कारखाने में ताला लगा देना ही “तालाबन्दी” कहलाता है। “तालाबन्दी” द्वारा नियोक्ता श्रमिकों पर दबाव बनाता है और उनकी एकता को खंण्डित करने का प्रयास करता है।

जिस प्रकार हड़ताल श्रमिकों के हाथ में एक ऐसा शस्त्र है, जिससे वह नियोक्ता पर अपनी मांगें मनवाने के लिए पार बना सकते हैं उसी प्रकार तालाबन्दी नियोक्ता के हाथ में एक ऐसा शस्त्र है जिसके द्वारा वह श्रमिकों की मागा का अस्वकार कर सकता है। यह भी औद्योगिक विवाद का ही परिणाम है। नियोक्ता श्रमिकों को कार्य स्थल से दूर रहने का कह सक

धरना (Picketing)

 जब कोई यूनियन किसी नियोक्ता के विरुद्ध हड़ताल पर जाने का आवाहन करती है तो “धरना” एक सामान्य अथवा मानक प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत कुछ श्रमिक फैक्टरी गेट के सम्मुख बैठ जाते हैं तथा अन्य श्रमिकों को कार्यस्थल पर जाने से हतोत्साहित करते हैं। नियोक्ता पर दबाव तब और बढ़ जाता है जब अन्य कम्पनियों से सम्बन्धित कर्मचारी भी काम करना बंद कर देते हैं और धरने में शामिल हो जाते हैं।

धरने (Picketing) में श्रमिक अपने हाथों में झण्डे, पोस्टर या बैनर आदि लिये रहते हैं जिससे कि जनता (Public) को उनके विवाद के बारे में पता चले और उन्हें जनता की सहानुभूति एवं सहयोग प्राप्त हो। धरना किसी व्यापार में बाधा पहँचाने

और उसके माध्यम से अपनी मांगों को मनवाने के लिए भी नियोजित किया जा सकता है।

धरने पर बैठा हुआ श्रमिक समूह, उसी फैक्टरी में कार्य करने वाले अन्य श्रमिकों को रोकता है और ऐसा करने में वह कभी-कभी श्रमिकों की बेइज्जती (Insult) अथवा उनसे मारपीट भी कर देता है। धरने से फैक्टरी के कार्य में बाधा पहुँचती है, उसकी साख (Goodwill) खराब होती है तथा श्रमिक नियोक्ता के सम्बन्धों में कड़वाहट आती है।

इसे भी पढ़े –Industrial disputes in hindi-औद्योगिक विवाद हिंदी में

घेराव (Gherao)

धरना तथा हड़ताल की ही भाँति घेराव (Gherao) भी नियोक्ता पर दाब डालने की एक विधि है जिससे कि वह यूनियन की मांगों को पूरा करने के लिए तैयार हो जाये।

घेराव (Gherao) में श्रमिक प्रबन्धक या नियोक्ता को अपने ही कार्यालय घंटों अथवा दिनों तक रूके रहने के लिए मजबूर कर देते हैं। कभी-कभी तो उसका खाना-पीना तक बंद कर देते हैं। कभी-कभी तो उसका खाना-पीना तक बंद कर देते हैं। श्रमिक नियोक्ता के कार्यालय के चारों ओर समूहों (Groups) में बैठते हैं।

हड़ताल के ठीक विपरीत घेराव में नियोक्ता या प्रबन्धक के साथ भौतिक रूप से जोर जबरदस्ती होती है जबकि हडताल/ आर्थिक दाब बानती है। इस प्रकार घेरा से औद्योगिक समभाव (Harmony) तो प्रदूषित होती है, साथ में कानन व्यवस्था की स्थिति भी खराब हो जाती है।

reference-http://14.139.60.114:8080/jspui/bitstream/123456789/15515/11/Strikes%20Lock-

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