what is Types of Wages in hindi-मजदूरी के प्रकार क्या है?

हेल्लो दोस्तों ! आज इस पोस्ट में जावा Types of Wages in hindi क्या होता है यह किस लैंग्वेज से बना होता है इसके फीचर क्या क्या होते है आज इस पोस्ट में बताया जायेगा  तो चलिए जावा java को समझते है

मजदूरी के प्रकार (Types of Wages)

पारिश्रमिक या मजदूरी के प्रमुखतयाः निम्न प्रकार होते हैं

  1. मुद्रा, मजदूरी या सांकेतिक मजदूरी (Money Wages or Nominal Wages)
  2. वास्तविक मजदूरी (Real Wages)
  3. न्यूनतम मजदूरी (Minimum Wages),
  4. उपयुक्त या न्यायोचित मजदूरी (Fair Wages)
  5. निर्वाह मजदूरी (Living Wages)

उपरोक्त मजदूरियों का संक्षिप्त विवरण निम्न हैं

1,मुद्रा या सांकेतिक मजदूरी (Money or Nominal Wage)

सांकेतिक मजदूरी, श्रमिक की वर (earnings) है जो उसे धन या मुद्रा के रूप में प्राप्त होती है। यह मजदूरी नकद भुगतान द्वारा दी जाती है तथा अन्य लाभ सम्मिलित नहीं होते।

हमारे देश में श्रमिकों को उनके पारिश्रमिक का भुगतान रुपये/पैसे में किया जाता है क्योंकि हमारे देश की मुद्रा रुपये/पैसे है। इसीलिए इसे मुद्रा-पारिश्रमिक भी कहते हैं।

2.वास्तविक मजदूरी (Real Wages)

नकद भुगतान को सम्मिलित करते हुए, श्रमिकों को दी जाने वाली आवश्यक वस्तुओं, सुख सुविधाओं, विलासिता की वस्तुओं तथा अन्य लाभों सहित कुल भुगतान को, जो श्रमिक अपनी सेवाओं और किये गये प्रयासों के प्रतिफल में पाता है, वास्तविक मजदूरी कहते हैं।

अर्थात् वास्तविक मजदूरी = नकद मजदूरी + अन्य लाभ/सुविधाएँ।

उदाहरण के लिए यदि नियोक्ता श्रमिकों को नकद भुगतान के अतिरिक्त अन्य सुविधाएँ तथा लाभ जैसे यूनिफार्म, किराया, मुफ्त आवास, मुफ्त चिकित्सा सुविधा, श्रमिकों के बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था, मुफ्त बिजली-पानी आदि, देता है तो इन सुविधाओं की गणना पारिश्रमिक के रूप में करके तथा उसमें नकद भुगतान को जोड़कर कुल वास्तविक मजदूरी प्राप्त की जा सकती है।

3.न्यूनतम मजदूरी (Minimum Wages)

एक श्रमिक अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति जितने कम से कम पारिश्रमिक से करवा सकता है तथा जीवन यापन के लिए आवश्यक वस्तुओं को जटा सकता है। वह उसकी न्यूनतम मजदूरी कहलाती है।

श्रमिक की न्यूनतम मजदूरी न केवल उसकी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आवश्यक हो बल्कि उसकी कुछ अन्य आवश्यकताओं जैसे बच्चों की शिक्षा, आवास, चिकित्सा तथा अन्य सामाजिक आवश्यकताओं की पर्ति भी कर सके।

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अत: जीवनयापन के मूल्यों को दृष्टिगत रखते हुए ही न्यूनतम मजदूरी का निर्धारण किया जाना चाहिये। इसी को मद्देनजर रखते हुए विश्व के अधिकतर देशों ने न्यूनतम मजदूरी अधिनियम लागू किया जिससे नियोक्ता श्रमिक को न्यनतम मजदरी देने के लिए बाध्य हो तथा मजदूरी के हितों की रक्षा की जा सके।

भारत में न्यूनतम मजदूरी अधिनियम-1948 देश के सभी भागों में लागू है। इस अधिनियम के तहत किसी भी श्रमिक को एक निर्धारित न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी का भुगतान नहीं किया जा सकता है। यदि कोई उद्योग श्रमिक को न्यूनतम मजदूरा देने में असमर्थ है तो वह उद्योग चलाये रखने के योग्य नहीं होगा।

न्यूनतम मजदूरी के भुगतान के निम्न उद्देश्य हैं

1 कर्मचारियों के कमजोर तबके अर्थात् श्रमिकों के हितों की रक्षा करना जो अनपढ, अलग-थलग, उपेक्षित, असगाठत होते हैं और सामूहिक सौदेबाजी में कमजोर अथवा असमर्थ होते हैं।

2.औद्योगिक शान्ति स्थापित करने के लिए।

3.जीवन यापन के सामान्य मानकों तथा श्रमिक कल्याण के कार्यक्रमों को पित करना। श्रमिकों में होने वाले शोषण पर अंकुश लगाना तथा उनके कार्य के अनुसार उन्हें मजदरी का भगतान कराना।

4.उपयुक्त या न्यायोचित मजदूरी (Fair Wages)

-यह वह मजदूरी है जो श्रमिक को उसके श्रम के प्रतिफल में जीवन स्तर बनाये रखने के लिए पर्याप्त हो।

उपयुक्त मजदूरी की दर सदैव न्यूनतम मजदूरी (Minimum wages) तथा निर्वाह मजदूरी (Living wage) के बीच के परास(range) में होती है। यह निर्वाह मजदूरी की तरफ बढ़ाया गया एक कदम है। जो नियोक्ता की भुगतान क्षमता पर निर्भर पानी यह निम्न दो सीमाओं के मध्य रहता है

1.निम्न सीमा, जो न्यूनतम मजदूरी अधिनियम द्वारा निर्धारित की जाती है, तथा

2.उच्चतम सीमा, जो उपक्रम की भुगतान क्षमता पर निर्भर करती है।

उपयुक्त मजदूर (Fair wage) निम्न बातों पर निर्भर करती है

  1. उद्योग का स्थान (Location)
  2. श्रमिक की उत्पादन क्षमता (Production capacity)
  • श्रमिकों की उपलब्धता (Availability)
  1. उद्योग की भुगतान क्षमता (Paying capacity)
  2. श्रमिकों की सामूहिक सौदेबाजी की शक्ति (Bargaining Power)

5.निर्वाह मजदूरी (Living Wage)

यह वह मजदूरी है जो एक श्रमिक जीवन यापन के स्तर को बनाये रखने जीवन-निर्वाह करने के लिए अन्य आवश्यकताओं जैसे बच्चों की शिक्षा, चिकित्सा, अन्य सामाजिक कर्तव्यों की पर्ति, आकस्मिक दुर्घटना, भविष्य के पर्याप्त साधन, बीमा, सुरक्षा की गारन्टी इत्यादि को पूरा करने के लिए पर्याप्त हो।

यह एक श्रमिक को बिना गुणवत्ता गिराये अधिक उत्पादन और कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करती है। निर्वाह मजदूरी का निर्धारण करते समय श्रमिक का स्तर तथा उसकी आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाता है। इससे श्रमिक की दक्षता बनी रहती है तथा श्रमिक असंतोष भी नहीं होता है। एक पढ़ा लिखा तथा बुद्धिमान श्रमिक निर्वाह मजदूरी को अपने जीवन स्तर की उन्नति को लगातार बनाये रखने के लिए प्रयोग करता है।

reference-https://www.economicsdiscussion.net/wages/wages-definition-types-and-other-details/7450

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