Principles of industrial legislation in hindi-प्रिंसिपल्स इंडस्ट्रियल लेजिस्लेशन हिंदी में

हेल्लो दोस्तों आज के इस पोस्ट में आपको Principles of industrial legislation in hindi के बारे में बताया गया है की क्या होता है कैसे काम करता है तो चलिए शुरू करते है

Principles of industrial legislation in hindi

(c). औद्योगिक अधिनियम के सिद्धान्त (Principles of Industrial Legislation):

औद्योगिक अथवा श्रम अधिनियम निम्न सिद्धान्तों पर आधारित है

1. सामाजिक न्याय (Social Justice)

2. सामाजिक समानता (Social Equality)

3. राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था (National Economy)

4. अन्तर्राष्ट्रीय एकरूपता तथा एकता (International Uniformity and Solidarity)

उपरोक्त का संक्षिप्त विवरण निम्न है

1. सामाजिक न्याय (Social Justice)

औद्योगिक कानुन, उद्योगपतियों एवं श्रमिकों के लाभ एवं हितों के उचित को सुनिश्चित करके श्रमिकों को सामाजिक न्याय दिलवाते हैं। ये उद्योग के अन्दर अच्छी कार्यकारी परिस्थितियों को सी करते हैं। सामाजिक न्याय पर आधारित विभिन्न औद्योगिक विधान निम्न हैं

कारखाना अधिनियम 1948 (Factory Act, 1948)

 – न्यूनतम वेतन अधिनियम 1948 (Minimum Wage Act, 1948)

कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम 1923 (Workmen’s Compensation Act 1923) आदि।

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2. सामाजिक समानता (Social Equality)

औद्योगिक कानूनों अथवा विधानों का दूसरा प्रमुख उद्देश्य, श्रमिव सामाजिक कल्याण (Social Welfare) अथवा सामाजिक समानता (Social Equality) को सुनिश्चित करना है। श्रमिकों के सामाजिक स्तर को उन्नत बनाते हैं। अच्छी स्वास्थ्य एवं सुरक्षा स्थितियाँ. कार्य घण्टे पर्याप्त वेतन सुनिश्चित श्रमिकों के सामाजिक एवं मनोबल के स्तर को भी बढ़ाते हैं।

3. राष्टीय अर्थव्यवस्था (National Economy)

ये कानून, राष्ट्र के विकास में आवश्यक उद्योगों को सामा (Normal growth) को सुनिश्चित करते हैं। ये श्रमिकों की आवश्यकताओं को परा करते हैं और उनकी दक्षता बढ़ात अच्छा एवं दक्ष उद्योग राष्ट्रीय अर्थवस्था को उन्नत करने में एक बड़ा योगदान करता है तथा देश को स्वःसान sufficient) बनाता है।

4. अन्तर्राष्टीय एकरूपता तथा एकता (International Uniformity and Solidarity)

श्रमिकों के हिता के लिए अन्तर्राष्टीय स्तर पर एक संगठन बनाया गया जिसे अन्तराष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Org ILO) कहते हैं। अन्तर्राष्टीय श्रम संगठन का मुख्य उद्देश्य सभी प्रकार के श्रम मामलों के लिा समान आधार पर न्यू स्थापित करना है। मानकों की समरूपता को केवल विभिन्न औद्योगिक नियमों को लागु करके प्राप्त किया जा सकता है

(d). विभिन्न प्रकार के श्रम-कानून अथवा श्रम विधान (Diffarantra.mansLabour-Lads)

श्रम विधान मुख्यत: चार प्रकार के होते हैं

1.उद्योग की कार्यकारी दशाओं से सम्बन्धित अधिनियम (Laws related with working conditions in factories)

(i) कारखाना अधिनियम-1948 (Factory Act, 1948)

(ii) भारतीय जहाजरानी अधिनियम-1923 (Indian Merchant Shipping Act, 1923) (iii) औद्योगिक नियोजन अधिनियम-1946 (Industrial Employment Act, 1846)

(iv) खान अधिनियम-1952 (The Mines Act, 1952)

2.कर्मचारियों के संगठनों से सम्बन्धित अधिनियम (Laws related to Worker’s Associations)

(i) श्रमिक संघ अधिनियम, 1926 (Trade Union Act, 1926)

(ii) औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 (Industrial Dispute Act, 1947)

3. विशेष मामलों से सम्बन्धित अधिनियम (Laws related to Specific matters)

(i) कम्पनी अधिनियम, 1956 (Company Act, 1956)

(ii) कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923 (The Workmen’s Compensation Act,1923)

(iii) वेतन/पारिश्रमिक भुगतान अधिनियम, 1936 (The Payment of Wages Act 1936) (iv) न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948 (The Minimum Wage Act-1948)

(v) कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 (1989 तक संशोधित) (The Employee’s State Insurance AC 1948) (Amended upto 1989)

(vi) कर्मचारी भविष्य निधि अधिनियम, 1952 (The Employee’s Provident Fund Act, 1952)

(vii) भारतीय बायलर अधिनियम, 1923 (The Indian Boiler Act, 1923)

 4. सामाजिक जीवन बीमा से सम्बन्धित अधिनियम (Laws related to Social Life Insurance)

(i) प्रसूति लाभ अधिनियम, 1961 (The Maternity Benefit Act, 1961)

(ii) कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 (The Employee’s State Insurance Act, 1923)

(iii) कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923 (The Workmen’s Compensation Act, 1923) उपरोक्त अधिनियमों में से कुछ महत्वपूर्ण अधिनियमों का विस्तृत विवरण अगले अनुच्छेदों में दिया गया है

reference-http://magazines.odisha.gov.in/Orissareview/2017/May/engpdf/26-31.pdf

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