प्रबन्ध में श्रमिकों की भागीदारी-Worker’s Participation in Management in hindi

हेल्लो दोस्तों आज के इस पोस्ट में आपको Worker’s Participation in Management in hindi के बारे में बताया गया है की क्या होता है कैसे काम करता है तो चलिए शुरू करते है

प्रबन्ध में श्रमिकों की भागीदारी (Worker’s Participation in Management)

आज के युग में उद्योग को एक सामाजिक संस्था की संज्ञा दी जा सकती है। प्रबन्धन, श्रमिक अथवा समाज सभी का .. हित, अलग-अलग कारणों से, इसी बात में है कि उद्योग की निरंतरता बनी रहे तथा वह और अधिक समृद्ध एवं विकसित हो।

डा० मेहत्रास (Dr. Mehtras) ने भागीदारी के बोध को कुछ इस प्रकार परिभाषित किया है-“यह उद्योग में लोकतांत्रिक प्रशासन का सिद्धान्त है जो प्रबन्धकीय क्रियाओं की सम्पूर्ण रेंज में, प्रबन्धन के सभी उपयुक्त स्तरों पर अपने उचित । प्रतिनिधियों द्वारा एक औद्योगिक संगठन के विभिन्न पदों पर निर्णय लेने के अधिकार को बाँटता (Sharing) है।”

 भागीदारी का अर्थ है मिलकर कार्य करना। भागीदारी किसी व्यक्ति का सामहिक स्थिति में समह के साथ मानसिक एव भावानात्मक लगाव है जो उसे समूह के लक्ष्यों अथवा उद्देश्यों की पूर्ति हेतु योगदान करने के लिए प्रेरित करता है तथा जिम्मेदारिया को बाँटता है।

भागीदारी का मूल आधार वस्तुतः श्रमिक को एक ऐसा निर्णय में अपनी राय देने का हक प्रदान करना है जो भविष्य उसे प्रभावित करेगा। प्रबन्ध तंत्र अधिक प्रभावशाली रहता है। जबकि श्रमिक उपक्रम के मामलों में अपनी भागीदारी मात्र से ही प्रसन्न रहता है। विशेषतया जब श्रमिक कल्याण तथा कार्य परिस्थितियों जैसे मामलों पर निर्णय लिया जाना हो। यदि श्रमिक को कार्य परिस्थितियों आदि के बारे में निर्णय लेने का अवसर प्रदान किया जाये तो कम्पनी के उद्देश्यों और लक्ष्यों को आध प्रभावी ढंग से प्राप्त किया जा सकता है।

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प्रबन्धन कार्यों में श्रमिकों की भागीदारी किसी भी रूप में हो सकती है। इसमें कर्मचारियों की कार्य समितियों का ग करके प्रबन्धन में उनकी भागीदारी स्थापित की जाती है।

प्रबन्धन में श्रमिक की भागीदारी का उद्देश्य/आवश्यकता (Objectives/Need for Worker’s Participation in Management)

प्रबन्धन में श्रमिकों/कर्मचारियों की भागीदारी निम्नलिखित उद्देश्यों अथवा आवश्यकताओं के लिए प्राप्त की जा सकती है

1. उद्योग में उच्च उत्पादकता प्राप्त करने हेतु मानवीय कारकों और मानवीय सम्बन्धों को महत्व देने के लिए, श्रमिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए तथा औद्योगिक सम्बन्धों को सुधारने के लिए श्रमिकों की प्रबन्धन में भागीदारी आवश्यक है तथा प्रबन्धन के प्रत्येक स्तर पर विशेषतया प्लांट स्तर पर श्रमिकों का और अधिक सहयोग प्राप्त करने के लिए भी प्रबन्धन में श्रमिकों की भागीदारी आवश्यक है।

2. प्रबन्धन में श्रमिकों की भागीदारी उनके उच्च स्तरीय आवश्यकताओं जैसे सामाजिक तथा अहम् (egoistic) आवश्यकताओं को संतुष्ट करने में मदद करता है। इस प्रकार की संतुष्टि, उच्च दक्षता एवं उत्पादकता के लिए प्रोत्साहन का कार्य करती है।

 3. औद्योगिक मनोविज्ञान के सिद्धान्त तथा कार्मिक प्रबन्धन के नये रूझान (Trends) भी प्रबन्धन में श्रमिकों की भागीदारी की आवश्यकता को महत्व देते हैं।

 4. अधिकांश देशों में आजकल श्रमिक पढ़े लिखे तथा जानकार होते हैं और वे चाहते हैं कि उनके नये विचारों और सृजनात्मक पहल को प्रबन्धन तंत्र सुने और समझे और उन्हें अधिक जिम्मेदारी से काम करने की अनुमति प्रदान करे।

5. अब यह विचार तेजी से विकसित हो रहा है कि प्रबन्धन में श्रमिकों की भागीदारी उनका अधिकार है और औद्योगिक लोकत्र को बचाये रखने के लिए आवश्यक है।

6. श्रमिक असंतोष को समाप्त करने तथा आपसी समझ बनाने के लिए, जिससे कि उद्योग की उन्नति में अपनाये जाने वाले परिवर्तनों में श्रमिक विरोध का सामना करना पड़े भागीदारी आवश्यक है।

7. यह औद्योगिक अनुशासन बनाये रखने तथा श्रमिक फेरबदल व अनुपस्थिति को कम करने के लिए भी आवश्यक है। 8. यह श्रमिक/कर्मचारी की सृजनात्मकता का प्रयोग करती है तथा दायित्व को स्वीकार करने के लिए उत्साहित करता है।

प्रबन्धन में श्रमिक भागीदारी के प्रकार (Forms of Worker’s Participation in Management)

प्रबन्धन में श्रमिकों की भागीदारी विभिन्न तरीकों से हो सकती है जो निम्न प्रकार है

(a) औपचारिक भागीदारी (Formal Participation)

(b) अनौपचारिक भागीदारी (Informal Participation)

उपरोक्त का विवरण संक्षेप में निम्न हैं

(a) औपचारिक भागीदारी (Formal Participation)

इसमें श्रमिकों और प्रबन्धकों के मध्य एक योजना (Plan) के अनुसार समन्वय तथा सहयोग किया जाता है। इसमें श्रमिकों और प्रबन्धकों के बीच कुछ सीमा तक कार्य प्रणाली तैयार कर ली जाती है, जो सामान्यतया संघों के माध्यम से अपनायी जाती है। श्रमिकों व प्रबन्धन निम्न योजनाओं पर मिलकर कार्य कर सकते हैं

(i) दुर्घटना से बचाव,

(ii) पदार्थ की बर्बादी (Waste) को रोकना तथा त्रुटियों (Defects) को शून्य स्तर (zero defect level) तक लाना,

 (iii) श्रमिक की फेरबदल (Turnover) तथा अनुपस्थिति पर नियन्त्रण, तथा

(iv) कर्मचारी बीमा योजना आदि।

ये भागीदारी भी निम्न दो प्रकार की हो सकती है

(i) आरोही भागीदारी (Ascending Participation)

 (ii) अवरोही भागीदारी (Descending Participation)

आरोही प्रकार की भागीदारी में श्रमिकों में से चने गये प्रतिनिधि प्रंबध की वार्ताओं में सम्मिलित होते हैं आर प्रबन्धन उच्च स्तरीय निर्णय लेने में अपना योगदान देते हैं। उदाहरणार्थ-बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की बैठक में भाग लेना। अवरोही प्रकार औद्योगिक प्रबन्धन एवं उद्यमियता विकास की भागीदारी में श्रमिकों के प्रतिनिधि अपना योगदान व सझाव स्वयं नियोजित करते हैं तथा शॉप फ्लोर पर अपने कार्य के सम्बन्ध में स्वयं निर्णय लेते हैं।

श्रीमको को सामूहिक (Collective) भागीदारी निम्नलिखित रूप से प्राप्त की जाती है

(i) कार्य समितियों द्वारा (Through Works Committees) कार्य समितियों का प्रमुख कार्य श्रमिकों एवं प्रबन्धन के बीच अच्छे तथा मधुर सम्बन्ध बनाना तथा उन्हें बढ़ावा (Promote) देना है। यह समिति दोनों पक्षों के मतभेदों पर अपनी राय प्रस्तुत करती है और दोनों पक्षों के उभयनिष्ठ हितों में मध्य मतभेदों को सुलझाने का प्रयास करती है।

(ii) संयुक्त-परिषद द्वारा (Through Joint Councils)-संयुक्त परिषद, जिसमें श्रमिक और प्रबन्धक दोनों के प्रतिनिधि होते हैं, परस्पर सामान्यहित की बातों पर निर्णय लेते हैं जैसे दुर्घटना से बचाव, सुरक्षा-उपाय, उत्पादन मानकों का निर्धारण, श्रमिकों का शिक्षण/प्रशिक्षण तथा कर्मचारी कल्याण कार्यक्रम आदि

 (iii) सूचनाओं के आदान-प्रदान द्वारा (Through Information Sharing)-इसके द्वारा श्रमिकों को कम्पनी की योजनाओं, नीतियों, वित्तीय स्थिति आदि के बारे में बताया जाता है।

 (iv) कर्मचारी निदेशक द्वारा (Through Employee’s Directorate)-इस भागीदारी में कर्मचारियों अथवा श्रमिकों में से चुना गया एक प्रतिनिधि बोर्ड ऑफ डायरेक्टरर्स का सदस्य होता है। श्रमिकों की व्यक्तिगत (Individual) भागीदारी निम्न रूप से प्राप्त की जा सकती है

(i) सुझाव प्रणाली (Suggestion System)—जिसमें श्रमिक को अपने निजी सुझाव देने का अधिकार होता है। ये प्राय: वे श्रमिक होते हैं जो अपने कार्य से सम्बन्धित सूक्ष्म से सूक्ष्म गहन जानकारी रखते हैं और सुझाव देने की योग्यता। हैं। इससे श्रमिक का आत्मविश्वास तथा मनोबल बढ़ता है तथा उसकी उत्पादकता में वृद्धि होती है।

(ii) प्रतिनिधि मंडल और जॉब विस्तार (Delegation and Job Enlargement)-इसमें श्रमिकों को अपने स्वयं के कार्य निर्धारण का अधिकार दिया जाता है।

 (b) अनौपचारिक भागीदारी (Informal Participation)

इस प्रकार की भागीदारी कार्यकारी समूह (working group) के स्तर पर होती है, जिसमें फोरमैन को अवसर प्राप्त होता है कि वह समस्या के समाधान (Problem solving) और निर्णय लेने (decision making) में अपनी भागीदारी बनाये। ये प्रायः ऐसे प्रकरण होते हैं जो फोरमैन/सुपरवाइजर के अधिकार कार्यक्षेत्र में आते हैं।

 प्रबंधन में श्रमिक भागीदारी की सफलता की शर्ते (Conditions for the Success of Worker’s Participation in Management)

प्रबंधन में श्रमिक भागीदारी की सफलता की प्रमुख शर्ते निम्न हैं

(i) भागीदार में हिस्सा लेने वाले श्रमिक स्पष्ट वक्ता होने चाहिये। वे सही ढंग से अपनी बात प्रबन्धन को समझाने के योग्य होने चाहिए।

(ii) प्रबन्धन और श्रमिकों में परस्पर विश्वास एवं सहयोग की भावना होनी चाहिए।

(iii) भागीदारी करने वाले श्रमिकों में समस्याओं को समझने की योग्यता हो, वह समस्या की जटिलता को समझे और परस्पर प्रभाव डाल सके। स कम्पनी के महत्वपूर्ण मामलों में, श्रमिक को भागीदारी एवं निर्णय लेने की अनुमति होनी चाहिए जैसे नई मशीनरी की खरीद, ऑपरेशन की नई विधियाँ आदि।

(v) विचार-विमर्श का स्तर स्वतंत्र एवं स्पष्ट होना चाहिए तथा कोई भी तथ्य छुपाकर नहीं रखना चाहिए।

(vi) किसी श्रमिक की भागीदारी का उसके कार्य तथा प्रतिष्ठा पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए।

(vii) विचार-विमर्श करते समय दोनों पक्षों को एक दूसरे के पक्ष का सम्मान करना चाहिए। केवल अपना स्वार्थ नही देखना चाहिए। उदाहरण के तौर पर नियोक्ता उत्पादन लागत कम करने के लिए न्यूनतम मजदूरी देना चाहिए जबाक श्रमिक अपने हितों की रक्षा के लिए अधिकतम मजदूरी एवं भत्तों की माँग करेगा। दोनों पक्षों को परस्पर सहयोग करके सम्मानजनक समाधान निकालना चाहिए।

reference-https://www.slideshare.net/ShyamasundarTripathy/workers-participation-in-management-34381665

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